नक्सलवाद की समस्या
Nasalwad ki Samasya
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक चुनावी भाषण में कहा था: भारत समस्याओं का देश है। सबसे अधिक बड़ी समस्या आतंकवाद की है। यह आतंकवाद देश में कई रूपों में देखने को मिलता है।’ उनमें से एक रूप है नक्सलवाद की समस्या। बंगाल में नक्सलबाड़ी गाँव में कुछ नवयुवकों ने व्यवस्था के विरुद्ध हिंसक बगावत कर दी। इस बगावत को सही तरीके से दबाया न जा सका। उसका परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे यह विद्रोह एक आन्दोलन के रूप में खड़ा हो गया। इस विद्रोह को नक्सलवादी समस्या कहा जाने लगा। पहले तो यह समस्या कुछ ही गाँवों में फैली बाद में इसने और राज्यों को भी अपने में लीलना शुरू कर दिया। इसकी चपेट में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और आंध्र प्रदेश आदि प्रदेश भी आ गए। इन प्रदेशों के असंख्य युवकों ने नक्सलवाद की सदस्यता ले ली। क्योंकि यह आन्दोलन अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का आश्रय लेता था इसलिए बहुत-से ग्रामीण लोगों ने इनके प्रति सहानुभूति रखनी शुरू कर दी। छत्तीसगढ तथा झारखण्ड के आदिवासी क्षेत्रों में तो इन लोगों की समानान्तर सरकार चलती है। नक्सलवादी ग्रामीणों के झगड़े को निपटाते हैं और ठेकेदारों से धन वसूलते हैं। अनेक क्षेत्रों में पुलिस भी इनके समक्ष मजबूर है। वस्तुत: व्यवस्था के बल पर सैकड़ों वर्षों से आदिवासियों का शोषण किया जाता रहा है। नक्सलवाद इसी शोषण के विरुद्ध हिंसक विद्रोह है। नक्सलवादी पुलिस कर्मचारियों, अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों को अपना शिकार बनाते हैं। अब तो इस आन्दोलन में ऐसे तत्त्व भी शामिल हो गए हैं जो अपराधी प्रवृत्ति के रहे हैं। अभी तक प्रशासन नक्सलवादी समस्या का समाधान नहीं कर पाई है। जब तक सरकार आदिवासियों का शोषण समाप्त नहीं करती तब तक यह समस्या खत्म होने वाली नहीं।