नारी और नौकरी
Nari Aur Naukari
भारत की परंपरा नारी को घर-गृहस्थी तक सीमित रखना चाहती है। परंतु आज की नारी आधुनिक हो गई है। वह पुरुषों के समान कामधंधे और नौकरी को अपना चुकी है। नौकरी या कामधंधे के बिना वह आर्थिक रूप से परतंत्र थी। उसका व्यक्तित्व पुरुषों पर निर्भर था। नौकरी ने उसे व्यक्तित्व दिया, स्वाभिमान दिया। लेकिन उसे नौकरी की कीमत भी चुकानी पड़ी। समाज चाहता है कि वह पहले की तरह घर-गृहस्थी के भी सारे कार्य परे करे। इस कारण वह दो-दो भूमिकाएं निभाने के लिए मजबूर हो गई है। वह आठ घंटे ऑफिस में काम करती है तो बर्तन-चौके में भी पूरी जान लगाती है। उस पर दोहरा भार आ पड़ा है। धीरे-धीरे वह घर-गृहस्थी के कुछ कामों से मुक्ति पाने लगी है। पुरुष भी उसका साथ निभाने लगे हैं। समय के साथ समाज को सीखना होगा कि कामकाजी नारी को पुरुषों के समान घर के कार्यों से मुक्त रखा जाए या पुरुष उसके कार्यभार को बाँट लें। तभी नारी और नौकरी का अच्छा तालमेल बैठ पाएगा।