मिटते रीति–रिवाज
Mitate Riti-Rivaz
भारत रीति-रिवाजों का देश रहा है। यहाँ चाहे कोई त्योहार हो या शादी या फिर मृत्यु, सबमें कोई न कोई रीति या रिवाज रिवाज देखा जा सकता है। ये रीति-रिवाज आज जो पचास-साठ साल के हो रहे हैं उन्हें तो पता है पर जो नई उम्र के लोग हैं, वे इन्हें भूल गए हैं। देश के अनेक हिस्सों में विभिन्न जातियाँ निवास करती हैं। उनमें तरह-तरह के रिवाज प्रचलित हैं। इनमें से कुछ रीति-रिवाज अंधविश्वासों को बढ़ावा देते रहे हैं। कुछ आज के समाज के लिए अनुपयुक्त हैं। कभी-कभी इन रिवाजों से समाज को नुकसान हुआ है। लेकिन अधिकतर रिवाज भारतीय संस्कृति को संपन्न करने वाले हैं। जैसे-जैसे युग बदल रहा है, ये मिटते भी जा रहे हैं। विवाह के अनेक रिवाज थे। नवरात्रों पर सांझी रखने की परंपरा थी, आज खत्म हो गई है। पंजाब में लोहड़ी के त्योहार पर छोटे बच्चे घरों और दुकानों पर लोहड़ी के गीत गाकर पैसे माँगते थे। रात लोहड़ी दहन किया जाता था। यह नई बहू की पहली लोहड़ी कहलाती थी। आज यह रिवाज बहुत कम दिखाई देता है। देश के अनेक भागों में होली के अवसर पर गली-मुहल्लों में जुलूस निकाले जाते थे। लोग जुलूस में शामिल लोगों पर रंग डालते थे। छतों से परिहास के तौर पर राह चलते लोगों की तार लगाकर टोपियाँ खींच लेते थे। घरों में दामाद के आने पर आरती उतारी जाती थी, तिलक किया जाता था। घर में श्रेष्ठ वस्तु पकाने के बाद लोग अपने पड़ोसियों को कुछ भिजवा देते थे। विवाह के पश्चात् लड़कियाँ एक-दो महीने मायके में व्यतीत करती थीं। तीजों पर गाँवों में झले लगते थे। पूरे महीने शादीशुदा व नवयुवतियाँ झूला झूलती थीं। लोग सुबह उठकर माता-पिता के चरणों का स्पर्श करते थे तथा उनसे आशीर्वाद लेते थे, परन्तु आजकल अधिकांश रीति-रिवाज दम तोड़ चुके हैं। माता-पिता का पैर छना तो दर उनके साथ बदसुलूकी पर उतर आए हैं। बहनें भाइयों के घर राखी लेकर जाती थीं। आज भाई के पास बहनों के लिए समय नहीं है। लोग टी.वी., मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में खोए रहते हैं। किसी पार्टी में शामिल होना, ब्यूटी पार्लर जाना. मॉल्स में घूमते रहना आदि आजकल के रिवाज हो गए हैं पुराने रिवाज तो अब कल की बात हो गए हैं।