मेरा प्रिय खेल कबड्डी
Mera Priya Khel Kabaddi
कबड्डी खेल तो कई तरह के हैं, जैसे बैडमिंटन, क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केट बॉल, लॉन टेनिस, टेबिल टेनिस आदि पर मुझे सब खेलों में कबड्डी खेलना ज्यादा अच्छा लगता है। यही मेरा प्रिय खेल है। बैडमिंटन, फुटबॉल, टेबिल टेनिस आदि ऐसे खेल हैं जिनके लिए कोई उपकरण आवश्यक नहीं है। स्टिक के बिना हॉकी नहीं खेली जा सकती, क्रिकेट के लिए भारी-भरकम उपकरण चाहिए पर कबड्डी के लिए कुछ जरूरी नहीं है। कबड्डी के लिए उँगली से पाला खींचिए और खेल शुरू। क्रिकेट बगैरह ऐसे खेल हैं जिनमें चोट लग सकती है पर कबड्डी में ऐसा नहीं है। हालाँकि हल्की-फुल्की चोट इसमें भी लग सकती है। जैसे कोई खिलाड़ी किसी को पकड़ने के लिए कैंची मारे तो उससे टाँग में चोट लग जाए। पकड़ते समय किसी खिलाड़ी के हाथ में कपड़ा आ जाए तो फट सकता है। यह ऐसा खेल है जिसे जब चाहे खेल सकते हैं। इसके लिए उस तरह का मैदान नहीं चाहिए जिस तरह क्रिकेट या हॉकी के लिए चाहिए।
कबड्डी में दो टीमें होती हैं। निर्णय लेने के लिए एक रैफरी होता है। रैफरी के सीटी बजाते ही खेल आरम्भ हो जाता है। एक टीम का खिलाड़ी दूसरी टीम के क्षेत्र में कबड्डी कबड्डी करता हुआ प्रवेश करता है। वह उस टीम में खिलाड़ियों को छूकर आउट करने का प्रयास करता है। दूसरी ओर दूसरी टीम के खिलाड़ी उसे पकड़ने का प्रयास करते हैं। अगर वह दूसरी टीम के खिलाड़ियों को छूकर वापस अपने पाले या क्षेत्र में सुरक्षित पहुँच जाता है तो दूसरी टीम के जिन खिलाड़ियों को उसने छुआ होता है वे मरे हुए माने जाते हैं, परन्तु अगर वह स्वयं दूसरी टीम में खिलाड़ियों द्वारा पकड़ा जाता है और उसकी साँस टूट जाती है। अथवा कबड्डी बोलना बंद कर देता है, वापस अपने क्षेत्र में नहीं पहुंच पाता तो वह मरा हुआ घोषित किया जाता है। इसी प्रकार अब दूसरी टीम का खिलाड़ी कबड्डी बोलता हुआ उनके क्षेत्र में प्रवेश करता है। इस खेल में सभी खिलाड़ियों का आउट होना आवश्यक है। इस तरह यह सदा सुलभ रहने वाला खेल है। इससे व्यायाम भी होता है और मनोरंजन भी।