मंगल अभियान
Mangal Abhiyan
देश के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त की जब भारत के अंतरिक्ष यान ने मंगल की कक्षा में प्रवेश कर इतिहास रचा। यह उपलब्धि हासिल करने के बाद भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने अपने पहले ही प्रयास में ऐसे अंतर्ग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है।
चौबीस सितंबर 2014 का दिन भारत ने मंगल ग्रह में मंगल अंतरिक्ष अभियान स्थापित कर दिया। भारत का नाम इसलिए इस विज्ञान में महत्त्व रखता है क्योंकि यह पहले ही प्रयास में अपने स्थान पर स्थापित हो गया जबकि इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कही जाने वाली अमेरिका, रूस जैसी शक्तियाँ कई प्रयास के बाद भी सफलता नहीं प्राप्त कर पाई। एक निबंधकार के अनुसार “24 सितम्बर, 2014 को सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपीजी मोटर (एल ए एम), यान को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (ए ओ एम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उससे फोटो खींच ले।’
यह सफलता भारत के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि चीन और जापान भी अभी इस दिशा में सफल नहीं हो पाए। इस सफलता के साथ भारत अपना यान भेजने वाला दुनिया में चौथा देश हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में इसरो के वैज्ञानिकों ने मुख्य 440 नयूटन लिक्विड एपीजी मोटर (एल.ए.एम) और छोटे थ्रस्टर्स को प्रज्वलित किए। ‘मार्स आर्बिटर मिशन’ (एम.ओ.एम.) अंतरिक्षयान ‘मंगलयान’ ने लाल ग्रह की कक्षा में पहुँचने तक लगभग एक साल का सफर तय किया। इस पर केवल 450 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसलिए ‘मंगलयान’ बहुत सस्ता मिशन है। इसने पाँच नवम्बर 2013 को अपना सफर शुरू किया था। इसने 660 किलो मीटर की दूरी तय की। जैसे ही अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा तो वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे को वध ई दी। नासा का मंगलयान 22 सितम्बर 2014 को मंगल कक्ष में प्रविष्ट हुआ।
मिशन की सफलता का ऐलान करते हुए प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा ‘एम ओ एम’ का मंगल से मिलन’ एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था, वहीं दूसरी ओर यहाँ स्थित भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता से भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने श्री मोदी ने कहा ‘विषमताएँ हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे।
यह यान मंगलग्रह की सतह और उसके खनिज पदार्थों के अवयवों का अध्ययन कर रहा है। इस अभियान से भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हुई है। अनेक संयंत्रों से सुसज्जित यह अभियान सफल है। इसरो ने फेसबुक पर एक तस्वीर भी डाली है। इसमें एक नारंगी रंग की सतह दिखाई दे रही है और इस पर डार्क होल है। यह तस्वीर सात हजार तीन सौ किलो मीटर की ऊँचाई से ली गई है जिसमें बताया गया है कि उसका नज़ारा अनूठा है।
यह ऑर्बिटर अपने उपकरणों के साथ कम-से-कम 6 माह तक दीर्घ वृत्ताकार पथ पर घूमता रहेगा और उपकरण से एकत्र आँकड़े पृथ्वी पर भेजता रहेगा।