महावीर जयन्ती
Mahavir Jayanti
बिहार स्थित वैशाली नगर के समीप कुंडलपुर के लिच्छवी राजा सिद्धार्थ के घर महावीर का जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम त्रिशला था। 598 ई.पू. सोमवार चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर का अवतरण हुआ था।
महावीर को वर्द्धमान नाम दिया गया क्योंकि ये बचपन से ही सर्वगुण सम्पन्न थे। यों इन्हें महावीर, वीर, वर्द्धमान, सन्मति एवं अतिवीर नाम से भी संबोधन किया जाता है। इनकी वीरता की एक घटना है। बचपन में अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे। तभी एक काला विषधर नाग पेड़ की कोटर से निकला। नाग को देखते ही सब बालक भाग गए। किन्तु वर्द्धमान ने उस भयानक नाग का फन पकड़ लिया और हँसते रहे।
एक और घटना है। अपने साथियों के साथ खेल रहे थे। खेल में जो जीतता वह हारने वाले के कंधे पर बैठता। महावीर एक बार भी नहीं हारे। वे सबके कंधों पर बैठते रहे। तभी वहाँ एक आदमी आया। उसने भी खेल में भाग लिया। वह भी हार गया। महावीर उसके कंधों पर जा बैठे। वह आदमी दरअसल एक राक्षस था। महावीर के बैठते ही उसने विकराल रूप धारण कर लिया। महावीर घबराए नहीं। उन्होंने राक्षस के सिर पर अपनी मुट्ठी से दो-तीन प्रहार किए। राक्षस जमीन पर गिर पड़ा। महावीर से क्षमा माँगने लगा।
महावीर राजकुल में पैदा हुए थे। उनके पास संसार के सारे सुख-वैभव थे। पर बचपन से ही उनका मन वैराग्य की ओर आकर्षित था। यशोदा नाम की कन्या से उनका विवाह हुआ था। उनके प्रियदर्शिनी नाम की कन्या भी थी। पर कुछ लोगों का मत है कि महावीर ने विवाह नहीं किया था।
माता-पिता के स्वर्गवास के बाद तीस वर्ष की आयु में महावीर एक रात घर से निकल गए। उन्होंने 22 वर्ष तक घोर तपस्या की। वस्त्रों तक का त्याग कर दिया। इस तपस्या के पश्चात् उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे ‘कैवल्यपद’ की प्राप्ति कहा जाता है। इस पद को प्राप्त कर महावीर स्थान-स्थान पर जैन धर्म का प्रचार करने लगे ।
जैन धर्म की स्थापना महावीर स्वामी ने ही की। इन्हें जैन धर्म के 24 महापुरुषों में से एक अंतिम तीर्थकर माना जाता है। इनके निर्वाण के बाद जैन धर्म दो भागों में बँट गया-श्वेतांबर व दिगम्बर ।
महावीर की प्रथम धर्मसभा में सर्वप्रथम इन्द्रभूति गौतम अपने शिष्य के साथ आए तथा महावीर के प्रथम शिष्य ‘गणधर’ कहलाए। कुल दस गणधर थे। इन सभी के दीक्षित होते ही महावीर की प्रथम देशना मुखरित हुई । विपुलाचल पर्वत पर शनिवार 557 ई.पू. श्रावण कृष्णा प्रतिपदा का यह पावन दिन था जिसे ‘वीर शासन उदय’ कहा जाता है।
‘अहिंसा परमो धर्मः’ मंत्र भगवान् महावीर का ही दिया हुआ है। महावीर का सिद्धांत था ‘जियो और जीने दो’। उन्होंने अहिंसा को केवल धर्म ही नहीं परम धर्म माना। उनका कहना था कि हर प्राणी को जीने का अधिकार है। वह जीवित और सुखी रहना चाहता है। अतः कभी किसी जीव को कष्ट पहुँचाकर दुखी नहीं करना चाहिए। महावीर का कहना था कि यदि संसार में शांति चाहते हो तो अहिंसा को अपनाओ।
हम जितना ध्यान अपनी भलाई का रखते हैं उतना ही ध्यान हमें दूसरों का भी रखना चाहिए। किसी भी प्राणी को कष्ट मत पहुँचाओ। जीवन. जीने का हक सबको है। अतः किसी से उसके जीने का हक मत छीनो। महावीर ने पाँच सूत्र दिए हैं। इन्हें अपनाकर देश, समाज, व्यक्ति सब सुख का जीवन जी सकते हैं। उनका पहला व्रत है-अहिंसा। किसी भी जीव को नहीं सताया जाए। दूसरा व्रत है-सत्य। सदा सच बोलो। तीसरा है-अस्तेय । अर्थात् चोरी नहीं करो। चौथा है-ब्रह्मचर्य। अर्थात् नियम और संयम से रहो। पाँचवाँ है-अपरिग्रह। आवश्यकता से अधिक किसी भी चीज का संग्रह मत करो।
लगभग 72 वर्ष की आयु में ईसा से लगभग 527 वर्ष पूर्व उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ था। आज ढाई हजार से अधिक वर्ष के उपरान्त भी संसार में करोड़ों लोग उनके अनुयायी हैं। उनके उपदेशों का पालन करते हैं। केवल जैन धर्म को मानने वाले लोग ही महावीर की पूजा नहीं करते, विश्व में शांति चाहने वाले लोग भी महावीर की आराधना करते हैं।
महात्मा गांधी ने महावीर के ही उपदेशों को माना था। गांधी भी अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य को अपनाने की शिक्षा देते थे।
गौतम बुद्ध ने भी अहिंसा को महत्व दिया। ईसा मसीह ने भी प्रेम से रहने का संदेश दिया था। पर आज हम इन महापुरुषों के उपदेशों के बिलकुल विपरीत चल रहे हैं।
महावीर स्वामी की जयंती जैन धर्म के अनुयायी तो खूब धूम-धाम और उमंग से मनाते हैं। पर हर विद्यालय में महावीर की जयंती मनाकर बच्चों को अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जानी चाहिए।
“जो मनुष्य अपना भला चाहता है उसे, पाप को बढ़ाने वाले क्रोध, अभिमान और मोह-माया व लोभ जैसे दोषों से दूर रहना चाहिए।” – महावीर स्वामी
कैसे मनाएं महावीर जयन्ती
How to celebrate Mahavir Jayanti
- महावीर स्वामी का चित्र लगाएँ ।
- माल्यार्पण कर दीप जलाएँ।
- भगवान् महावीर का सारा जीवन संपूर्ण मानव समाज के उत्थान, जैन धर्म की स्थापना में व्यतीत हुआ। उनके हर शब्द में उपदेश है। सन्मार्ग पर चलने का संदेश है। महावीर के पाँच व्रत हैं। उन पाँचों व्रतों के बारे में बताया जाए। जैसे अहिंसा। बच्चों को बताया जाए कि अहिंसा क्या है? इसी प्रकार सभी व्रतों के उद्देश्य समझाए जाएँ।
- किसी जैन मुनि व संत को बुलाकर महावीर की जीवनी व उनके विचारों से बच्चों को अवगत करवाया जाए।
- महावीर के जीवन में कई घटनाएँ हुईं। बच्चों को वे घटनाएँ सुनवाई जाएँ और जिन्हें मंच पर प्रस्तुत करना हो उन्हें मंच पर प्रस्तुत करें ।
- महावीर के प्रेरणादायक दिव्य वचनों के लेखन की प्रतियोगिता आयोजित की जाए।
- चित्रकला व क्राफ्ट वर्क के माध्यम से महावीर के चित्र बनवाए जाएँ ।