महाराणा प्रताप जयन्ती (Maharana Pratap Jayanti)
महाराणा प्रताप अजेय योद्ध थे। स्वतंत्रता के समर्थक। वीर शिरोमणि । जिनका नाम लेने भर से गर्व होता है। देशभक्त महाराणा प्रताप का जन्म • सन् 1540 ई. में कुम्भलगढ़ में हुआ था। प्रताप राणा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनकी माता जैवन्ताबाई घाली के सोनगरा के शासक अखैराज की पुत्री थीं।
प्रताप का बचपन कुम्भलगढ़ में ही बीता था। राजपूत राजकुमारों को दी जाने वाली शिक्षा ही प्रताप को दी गई। घुड़सवारी, अस्त्र-शस्त्र चलाना, सैन्य संचालन, युद्ध व्यूह रचना ये सब प्रताप ने युवा होते-होते सीख ली थी। शस्त्र चलाने में प्रताप को अत्यधिक निपुणता हासिल थी।
प्रताप का विवाह जैसलमेर की राजकुमारी छीरबाई से हुआ था। बत्तीस वर्ष की आयु में 28 फरवरी, सन् 1777 में प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। जब प्रताप ने सत्ता सँभाली तब मेवाड़ संकट की स्थिति से गुजर रहा था। राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था चरमराई हुई थी। कारण था निरंतर होने वाले मुगल आक्रमण।
राणा सांगा के बाद तीन राणाओं ने सत्ता सँभाली पर स्थितियाँ सुधरने के बजाय बिगड़ती चली गईं। मेवाड़ के कुछ भागों पर मुगलों का अधिकार हो जाने से मेवाड़ की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी। पूरा मेवाड़ तब चारों ओर मुगलों व उनके अधीन राजाओं से घिरा हुआ था। एक तरह से प्रताप को विरासत में एक चुनौती भरा समय और बिखरा हुआ साम्राज्य मिला था।
अकबर का दबाब मेवाड़ और प्रताप को आत्मसमर्पण कराने का था तो प्रताप दृढ़। वह दृढ़ था अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए। वह दृढ़ था अपनी मातृभूमि के गौरव को अक्षुण्ण रखने के लिए। उसे परतन्त्रता नहीं स्वतंत्रता प्रिय थी ।
अपनी शक्ति पर अटूट विश्वास रखने वाले प्रताप ने संघर्ष की राह ही चुनी। वह शक्तिहीन और साधनहीन राज्य का शासक था पर झुकना उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था।
प्रताप ने सबसे पहले अपनी सैन्य शक्ति को संगठित और शक्तिशाली बनाया। अपनी राजधानी गोगूँदा को छोड़ केलवाड़ा को राजधानी बनाया। यह स्थान सुरक्षित और युद्ध की दृष्टि से ज्यादा उपयुक्त था। फिर आमजन में साहस और राष्ट्रभक्ति व देशसेवा का जज्बा पैदा किया। मेवाड़ के गौरव की रक्षा के लिए यह सब जरूरी था ।
अकबर द्वारा चित्तौड़ जीत लेने के बाद आस बँधी थी कि प्रताप उसकी शरण में आ जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ। उधर अकबर भी जानता था कि युद्ध में प्रताप से जीतना आसान नहीं होगा। उसने चार बार प्रताप से समझौता करने के लिए शिष्ट मंडल भेजे। पर हिन्दू धर्म का रक्षक कैसे मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेता ।
संघर्ष चलता रहा। महल का सुख-चैन छोड़ जंगलों में रहना पड़ा। महलों के पकवान की जगह रूखी-सूखी रोटी खानी पड़ी। घास के बीज की रोटी खाकर भी प्रताप व उनका परिवार अपने संकल्प से विचलित नहीं हुआ।
प्रताप तो शौर्य, त्याग और राष्ट्रभक्ति की मिसाल हैं। राज्य-वैभव त्यागकर छब्बीस वर्ष तक विदेशी हमलावरों से मेवाड़ की रक्षा करते रहे। आज देश में प्रताप राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देने वाले जननायक हैं। राष्ट्रभक्ति की मिसाल कायम करने वाले, प्रजा के हित और मातृभूमि के स्वाभिमान की रक्षा करने वाले महानायक प्रताप की आज भी जरूरत है। प्रताप जयन्ती धूम-धाम से मनाते हुए उस अमर सेनानी को केवल श्रद्धा-सुमन ही अर्पित नहीं करें बल्कि उनके जीवन से प्रेरणा लें। राष्ट्रप्रेम का भाव जन-जन के हृदय में अंकुरित करें।
कैसे मनाएँ महाराणा प्रताप जयन्ती (How to celebrate Maharana Pratap Jayanti)
- प्रताप का फोटो लगाएँ ।
- दीप जलाएँ, माल्यार्पण करें।
- प्रताप दृढ़प्रतिज्ञ थे। स्वाभिमानी थे। स्वतंत्रता के रक्षक देशभक्त थे। उन्होंने जीवन भर त्याग और संघर्ष किया। उनकी जीवनी में से ऐसे प्रसंग और घटनाएँ छाँटकर बच्चों को सुनाएँ जो उनके उपरोक्त गुणों को उजागर करें। जो बच्चों को प्रेरणा दें।
- प्रताप की संक्षिप्त जीवनी बच्चों को सुनाई जाए।
- शक्तिसिंह से संवाद, भामाशाह से संवाद, बिलाव द्वारा रोटी ले जाने जैसे प्रसंगों को मंच पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
- स्वतंत्रताप्रेमी प्रताप की जयन्ती पर देशभक्ति के गीत गाए जा सकते हैं।