महानगरीय जीवन
Mahanagriya Jeevan
प्राय: 10 लाख की आबादी वाले नगर को महानगर कहते हैं। ऐसे नगर अपनी विशालता के कारण जहाँ हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं, वहीं अनेक बंधनों में भी बांधते हैं। इन नगरों में विश्वभर के सभी आधुनिक उत्पाद, सभी प्रकार की शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन के साधन मिल जाते हैं। महानगरों में रहन-सहन का स्तर, मकान, गलियाँ, सड़कें भी साफ़-सुथरी होती हैं। हर नए आविष्कार के नए मॉडल इन नगरों में उपलब्ध होते हैं। समाज जीवन से संपर्क की सुविधा भी यहीं उपलब्ध होती है। सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक गतिविधियाँ भी अधिक होती हैं। परंतु महानगर के अभिशाप भी कम नहीं हैं। यहाँ शांति नहीं है। यहाँ 24 घंटे हलचल मची रहती है। चारों ओर भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है, किंतु उसमें कोई भी अपना नहीं होता। कोई गुंडा सरेआम भरे बाजार में किसी की हत्या करके चला जाता है, और लोग तमाशबीन बने रहते हैं। महानगरों में लोगों की आत्मीयता खत्म हो जाती है।