महानगरीय जीवन
Mahanagariya Jeevan
महानगरों की जीवन-शैली तृष्णा से भरी है। महानगर में रहने वाला हर प्राणी लाखों-करोड़ों कमाकर भी बेचैन है। वह हॉफते-हॉफते पूरा जीवन काट देता है। महानगरों की आत्मीयता खो गई है, अपनापन नष्ट हो गया है। जीवन-रस सूख गया है। यहाँ का जीवन बहुत तीव्र हो गया है। यहाँ का वासी एक दिन में अनेक काम लपेटे रहता है। वह आजीविका के लिए एक नहीं, अनेक काम करता है। इसलिए उसका दिल भी तेजी से धड़कता है। यहाँ या तो दिल के दौरे से मौतें होती हैं या दुर्घटनाओं से। स्वाभाविक मौतें कम होने लगी हैं। यहाँ खान-पान की संरक्षित बासी चीज मिलती है। पैटीज, पेस्ट्री, बर्गर, पीजा और कोल्ड ड्रिक्स पी-पीकर यहाँ के लोग मोटापे और शिथिलता के शिकार होते जा रहे हैं। अधिकांश लोग विविध बीमारियों से ग्रस्त हैं। यहाँ 95% अंक प्राप्त करने वाला छात्र भी तनावग्रस्त है क्योंकि उसे 96% अक नहीं मिले; यहाँ अरबपति भी दुखी है क्योंकि उसका पड़ोसी खरबपति है। तनाव में रहना तो महानगर की जीवन-शैली बन गई है।