एम. डी. वालसम्मा
M D Valsamma
जन्म : 29 अक्तूबर, 1960 जन्मस्थान : ओटाथाई, (केरल)
एम.डी. वालसम्मा, जिनका पूरा नाम मंथूर देवासिया वालसम्मा है, एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता हैं। यह पदक उन्होंने भारतीय दर्शकों के सामने
1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में जीता था। वालसम्मा ने 400 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। वह 1982 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ जीत चुकी हैं तथा 1983 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। केरल सरकार द्वारा उन्हें जी. वी. राजा (नकद पुरस्कार दिया जा चुका है।
एम.डी. वालसम्मा को उनके परिचित ‘वाल्सु’ नाम से पुकारते हैं। वह एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक पाने वाली तृतीय भारतीय खिलाड़ी थीं। उनके पूर्व 1974 में कमलजीत संधू ने 400 मीटर दौड़ में एशियाई स्वर्ण पदक जीता था। इन दोनों खिलाड़ियों ने विदेशी धरती पर एशियाई पदक जीता था, जब कि वालसम्मा ने भारत में दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में बेहतरीन प्रदर्शन करके स्वर्ण पदक हासिल किया। वे उस बार बाधा दौड़ में पहली बार एशियाई खेलों में सम्मिलित की गई थीं।
एम.डी. वालसम्मा का जन्म केरल के केन्नौर जिले के ओटाथाई गांव में हुआ था। उनका एथलेटिक कैरियर स्कूली जीवन से ही आरम्भ हो गया था। कॉलेज तक आते-आते वह खेलों के प्रति अधिक गम्भीर हो गईं। उन्होंने मर्सी कॉलेज, पालघाट से उच्च शिक्षा ग्रहण की। उनका पहला पदक 1979 में उन्हें मिला, जब उन्होंने अन्तर-विश्वविद्यालय प्रतियोगिता में 100 मीटर बाधा दौड़ में विजय पाई।
उन्होंने दक्षिण रेलवे में नौकरी करते हुए ऐ.के. कुट्टी से कोचिंग ली। उन्होंने सुर्खियों में स्थान तब पाया जब 1981 में अन्तर-राज्य मीट, बंगलौर में उन्होंने 5 स्वर्ण पदक जीते। ये पदक उन्होंने 100 मीटर बाधा दौड़, 400 मीटर बाधा दौड़, 400 मीटर दौड़ तथा 100 व 400 मीटर रिले दौड़ में जीते। उनके इस सराहनीय प्रदर्शन से उन्हें रेलवे तथा राष्ट्रीय टीम में स्थान मिल गया। 1982 में उन्होंने स्वर्ण पदक जीतते हुए 100 मीटर बाधा दौड़ में राष्ट्रीय चैंपियनशिप हासिल की, साथ ही नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया जो पिछले एशियाई रिकॉर्ड से भी बेहतर था।
1982 के दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में वालसम्मा ने 400 मीटर बाधा दौड़ में 58.47 सेकिंड का नया राष्ट्रीय व एशियाई रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। उनके इसी श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारण उन्हें 1982 में अर्जुन अवॉर्ड’ प्रदान किया गया तथा 1983 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। उन्हें केरल सरकार द्वारा ‘जी. वी. राजा’ पुरस्कार प्रदान किया गया।
वह भारतीय टीम के सदस्य के रूप में ‘मलेशिया ओपन’ में भाग लेने गई और 400 मीटर के लिए रजत पदक प्राप्त किया और 4×400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उन्होंने 1983 के मास्को खेलों में भी भाग लिया। 1983 के साउथ एशियन फैडरेशन (सैफ) खेल, इस्लामाबाद में वालसम्मा ने 100 मीटर दौड़ में रजत पदक, 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
1990 में बीजिंग में हुए एशियाई खेलों में वालसम्मा ने 4×400 मीटर रिले तथा 4×400 मीटर रिले दौड़ में रजत पदक प्राप्त किया।
एम.डी. वालसम्मा का कैरियर लगभग 15 वर्ष का रहा जिसमें उन्होंने अनेक विश्व कप प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया जैसे हवाना, टोकियो, लंदन आदि। उन्होंने अनेक बार एशियाई खेलों में भी भाग लिया जैसे 1982, 1986, 1990, 1994 के एशियाई खेल। वालसम्मा ने कई एशियन ट्रैक एंड फील्ड मीट तथा सैफ खेलों में भी भाग लिया। उनके खेल की विशेषता यह रही कि उन्होंने अपने सभी प्रदर्शनों में अपनी छाप छोड़ी और कोई न कोई पुरस्कार अवश्य प्राप्त किया।
उपलब्धियां :
- वालसम्मा ने 1979 में अन्तर विश्वविद्यालय चैंपियनशिप में 100 मीटर बाधा दौड़ में पदक जीता।
- 1981 में अन्तर-राज्य मीट, बंगलौर में उन्होंने 5 स्वर्ण पदक जीते।
- 1982 में वालसम्मा ने नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाते हुए 400 मीटर दौड़ में चैंपियनशिप हासिल की। 8 मलेशिया ओपन में उन्होंने 400 मीटर दौड़ में रजत तथा 4×400 मी. रिले दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
- 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में उन्होंने 400 मीटर बाधा दौड़ में नया एशियाई रिकॉर्ड (17 सेकिंड) बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 4×400 मीटर रिले दौड़ में रजत पदक प्राप्त किया।
- 1983 के सैफ खेलों (इस्लामाबाद में उन्होंने 100 मीटर दौड़ में कांस्य, 400 मीटर दौड़ में रजत तथा 4×400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीते।
- 1990 के बीजिंग एशियाई खेलों में वालसम्मा ने 4×400 मीटर तथा 4×400 मीटर रिले दौड़ों में रजत पदक जीता। हैं उन्हें 1989 में अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया। हैं उन्हें 1983 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
- केरल सरकार ने उन्हें जी. वी. राजा अवॉर्ड प्रदान किया।