महात्मा बुद्ध
Lord Budha
रूप-रेखा
एक महापुरुष, उस समय का समाज जन्म, माता-पिता, लालन-पालन ज्योतिषी को भविष्यवाणी, विवाह पत्नी और पुत्र, महल छोड़कर तपस्या करने चले गए, कठोर तपस्या के बाद ज्ञान की प्राप्ति, लोगों को मध्यम मार्ग पर चलने का उपदेश दिया , बौद्ध धर्म का प्रचार।
भारत संत-महात्माओं और महापुरुषों का देश है । यहाँ समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है। इन्हीं महापुरुषों में महात्मा बुद्ध का नाम बड़े आदर से लिया जाता है । महात्मा बुद्ध के समय धर्म का रूप बिगड़ गया था । धर्म के नाम पर तरह-तरह के अत्याचार हो रहे थे । जाति-पाँति और आडंबर का बोलबाला था । ऐसी स्थिति में महात्मा बुद्ध ने लोगों को सच्चे धर्म का उपदेश दिया।
गौतम बुद्ध का जन्म आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कपिलवस्तु में हुआ था । इनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे । इनकी माता का नाम महामाया था । पुत्र के जन्म के कुछ दिनों बाद माता महामाया की मृत्यु हो गई । मौसी गौतमी ने बालक का लालन-पालन किया । बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया । बचपन से ही सिद्धार्थ में महापुरुषों के से लक्षण दिखाई देते थे । ज्ञान प्राप्त कर लेने पर वे ‘बुद्ध’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
सिद्धार्थ के बारे में ज्योतिषी ने उनके महान बनने की भविष्यवाणी कर दी थी । वे बचपन से ही गंभीर स्वभाव के थे । वे संसार के प्राणियों के सुख-दु:ख के बारे में सोचते रहते थे। पुत्र संसार से दूर न हट जाए, इसलिए पिता ने थोडे बडे होने पर सिद्धार्थ का विवाह करा दिया।
सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा एक राजकुमारी थी। यशोधरा ने एक पुत्र राहुल को जन्म दिया । लेकिन सिद्धार्थ का मन संसार के सखों और राजपाट में नहीं रमा । वे जानना चाहते थे कि जीवन का असली उद्देश्य क्या है । उनका मन प्राणियों के कष्ट देखकर द्रवित हो जाता था। एक दिन रास्ते में रोगी, बूढ़े और मरे हए व्यक्तियों को देखा तो बेचैन हो गए । फिर एक रात पत्नी और बच्चे को सोता छोड़कर चुपचाप महल से वन चले गए।
वन में जाकर सिद्धार्थ ने कठोर तपस्या शुरू की । लगातार उपवास से शरीर सूखकर काँटा हो गया । तब सुजाता नामक एक ग्रामीण स्त्री ने उन्हें खीर खिलाया । खीर खाकर सिद्धार्थ की जान में जान आ गई । वे गया में एक पीपल के पेड़ के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए । यहाँ उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । अब सिद्धार्थ बुद्ध कहलाने लगे । वह पीपल का वृक्ष बोधिवृक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसके बाद बुद्ध सारनाथ पहुँचे । यहाँ उन्होंने अपने शिष्यों को पहला उपदेश दिया । उन्होंने घूम-घूम कर लोगों को जीवन के यथार्थ का उपदेश दिया।
महात्मा बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग पर चलने के लिए कहा । मध्यम माग का अर्थ है – न तो शरीर को अधिक कष्ट देना और न ही अधिक आराम देना । उन्होंने कहा कि संसार दु:खों से भरा हुआ है । दु:ख का कारण माया-मोह और लालच है। इसलिए लोगों को माया मोह और लोभ त्यागकर सादगी से रहना चाहिए । आचार-व्यवहार में सत्य का पालन करना चाहिए । बुद्ध के उपदेशों का लोगों पर अच्छा असर पड़ा । अनेक राजा और आम लोग उनके शिष्य बन गए । सम्राट अशोक, कनिष्क तथा हर्ष ने बौद्धधर्म को अपनाया और उसका प्रचार-प्रसार किया । इनके प्रयासों से बौद्धधर्म का फैलाव श्रीलंका, वर्मा, जावा, सुमात्रा, चीन, जापान आदि देशों में हो गया । इन देशों में आज भी बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से लोग रहते हैं।
आज बौद्ध धर्म की गिनती संसार के महान धर्मों में की जाती है। बौद्धों का सबसे बड़ा धर्मस्थान बिहार के गया शहर के निकट बोध गया में है दुनिया भर के बौद्ध मतावलम्बी यहाँ आकर उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं । महात्मा बुद्ध को संसार आज भी बहुत श्रद्धा से याद करता है।