कामकाजी नारी का एक दिन
Kamkaji Nari Ka Ek Din
कामकाजी नारी का जीवन चक्की के दो पाटों की तरह होता है। जब वह दफ्तर में होती है तो उसे घर की चिंता खाती रहती है। जब घर में होती है तो कार्यालय की चिंता सताती है। उसका जीवन तनाव और अफरा-तफरी से भरा होता है। कामकाजी नारी को सुबह-सुबह न जाने कितने तनाव झेलने पड़ते हैं। उसे अपने दफ्तर की तैयारी करनी होती है। अपने पति और बच्चों के नाश्ते, भोजन तथा अन्य जरूरी कामों की तैयारी करनी होती है। यदि बच्चा बहुत छोटा हो तो फिर तनाव अत्याचार में बदल जाता है। कार्यालयों की दिनचर्या बहुत बोझिल और व्यस्त होती है। नारी को अध्यापिका, क्लर्क, अधिकारी या परिचारिका के रूप में दिन-भर सावधानी से काम करना होता है। साथ ही अपने बाँस को भी प्रसन्न रखना होता है। दिन भर की थकान लेकर जब वह घर पहुँचती है तो उसके बच्चे की तरसती बाँहें, चूल्हा-चौका तथा पति की कामनाएँ फिर उसे एक घमासान में धकेल देती हैं।