अस्पताल के साधारण वार्ड का दृश्य
Hospital ke General Ward ka Drishya
रविवार की बात है। मेरा छोटा भाई अचानक छत से गिर गया। उसके पाँव की हड्डी कई जगह से टूट गई। मैं उसे अस्पताल लेकर गया। प्लास्टर चढ़ाकर उसे साधारण वार्ड में भेज दिया गया। साधारण वार्ड में पहुंचा तो देखकर हैरान रह गया कि एक-एक बिस्तर पर दो-दो मरीज दाखिल थे। कुछ को नीचे लिटाया हुआ था। किसी के बिस्तर पर या तो पुरानी और गंदी चद्दर थी या थी ही नहीं। कुछ मरीज दर्द से चिल्ला रहे थे। इससे सोते हुए मरीज़ जाग जाते थे। कुछ दर्द से कराह रहे थे। किसी के मरीज का रिश्तेदार डॉक्टर को उसकी तकलीफ का वर्णन करने गया था तो कोई मरीज को जल्द ठीक होने की तसल्ली दे रहा था। वार्ड नंबर तीन में दो नसें मरीजों की देखभाल के लिए रखी गई थीं पर वे वार्ड के बाहर बने बरामदे में गप्पे मार रही थीं। उन्हें इसकी चिंता ही नहीं थी कि मरीजों की देखभाल भी करनी है। एक महिला जब उनमें से एक नर्स को बुलाने के लिए गई तो उसे झिड़ककर भगा दिया। कुछ देर बाद जब डॉक्टर राउंड पर आया तो वे दोनों नर्स उनके साथ ऐसे चल रही थीं जैसे न जाने कब से मरीजों का दुख-दर्द बाँटने में लगी हों। डॉक्टर भी आधे मरीजों को देखकर बाकी को फिर कहकर चला गया। कुछ देर में रोगियों के लिए खाना आ गया। खाना देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यह रोगियों के लिए न होकर पशुओं के लिए हो। इस खाने को देखकर कुछ तो नाक-भौं सिकोड़ रहे थे। कुछ को उसमें अजीब सी गंध महसूस हो रही थी। यह देखकर मैं हैरान रह । गया कि एक मरीज़ के नाक में नली लगी थी। हाथ में ग्लूकोस चढ़ रहा था, बरामदे में घूम रहा था। पूछने पर पता चला तो जवाब मिला, कि अभी यह मालूम नहीं है कि मुझे किस वार्ड में भेजा गया है। धन्य है सरकारी अस्पतालों का साधारण वार्ड!