ग्रीटिंग कार्ड
Greeting Card
(बधाई पत्रों का वर्तमान स्वरूप)
बधाई-पत्रों का वर्तमान स्वरूप सन् 1843 में प्रारम्भ हुआ, जब लंदन निवासी जे.आर. हास्ले ने अपने मित्र हेनरी कॉल को बधाई संदेश भेजा। इस स्वरूप को आगे बढ़ाने में योगदान किया महारानी विक्टोरिया ने, जो नववर्ष पर लाखों ग्रीटिंग कार्ड छपवाकर भेजा करती थी। अमेरिका में लुइस नामक चित्रकार ने सुन्दर बधाई-पत्र तैयार करके बधाई-पत्रों की परम्परा प्रारम्भ की।
शुभ अवसर पर हर घर में ग्रीटिंग कार्ड दिखाई दे जाते हैं। कुछ लोग
तो ग्रीटिंग कार्डों की झालर या कोलाज बनाकर घर सजाते हैं। शुभ अवसरों पर बधाई देने की परम्परा अत्यंत पुरानी है। विश्व के तमाम देशों में इसने अलग-अलग रूप में जन्म लिया। प्राचीनकाल में जब कार्ड नहीं थे तो लोग खुशी के अवसर पर एक-दूसरे को गुलदस्ते दिया करते थे। फूलों का रंग अवसर की झलक देता था। सफेद फूलों को शान्ति का प्रतीक माना जाता था. जबकि रंगीन फूलों को खुशी और समृद्धि का। वे गुलदस्ते मिट्टी के पात्रों में होते थे तथा उनमें सिंदूरी रंग से बधाई संदेश लिखा होता था।
छठी सदी में रोम के नागरिकों ने अपने राजा को वीरता चक्र पर बधाई संदेश भेजा। नववर्ष के अवसर पर भेजे गए इस संदेश में रोम की सीनेट और लोगों ने आगमी वर्ष के मंगलमय होने की कामना की थी।
सातवीं सदी में मिस्र में नववर्ष पर सुगंध भरी बोतलें भेजने का रिवाज प्रारम्भ हुआ। इस बोतल पर बधाई संदेश लिखा होता था। यह चलन काफी लोकप्रिय हुआ। दसवीं सदी में जर्मनी के लोगों ने पाम और केले के पत्ते पर हाथों से चित्रकारी करके बधाई संदेश बनाना और देना प्रारम्भ किया। कुछ लोगों ने पशुओं की खाला के टुकड़े काटकर उन्हें बधाई संदेश के लिए प्रयोग किया। खाल में दुर्गध न रहे, इसलिए उस पर इत्र छिड़का जाता था।
सत्रहवीं सदी में रोम के एक कवि विजो ने बधाई-पत्रों पर 300 पंक्तियों की कविता भी लिख डाली। यह कविता उनके मरणोपरांत उनकी कब्र पर भी लिखी गई। यह शिलालेख आज भी मौजूद है।
आज भारत में ग्रीटिंग कार्ड एक उद्योग का रूप ले चुका है। यहां के ग्रीटिंग कार्डों की मांग पूरे संसार में है। ग्रीटिंग कार्डों की छपाई से कम्पनियों को मुनाफा होता है। और भेजने से डाक विभाग और कोरियर सेवाओं को। चित्रकार, कलाकार, कवि आदि सभी को रोजगार मिलता है। इस उद्योग में राष्ट्रीय ही नहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी लगी हुई हैं।
तकनीकी विकास का असर इस क्षेत्र में भी हुआ है। अब कम्प्यूटर ग्राफिक्स की सहायता से ग्रीटिंग कार्ड बनाए जाने लगे हैं। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक कार्ड भी आ गए हैं, जिन्हें खोलने पर कोई धुन या बधाई संदेश सुनाई देता है। अब इ-मेल द्वारा भी ग्रीटिंग कार्ड भेजे जा रहे हैं। और वेबसाइट के जरिए भी बधाई संदेश दिया जा रहा है।
बधाई संदेशों की परम्परा ने सामाजिक क्षेत्र में भी अपना योगदान किया है। विकलांगों की एक संस्था विकलांग बच्चों से चित्रकारी कराती है तथा उन्हें उचित पारिश्रमिक देती है। फिर उन चित्रों के आधार पर बधाई संदेश बनाए जाते हैं और उन्हें बेचा जाता है। उससे प्राप्त आय से विकलांग कल्याण की योजनाएं चलाई जाती हैं। यूनीसेफ, क्राई, केयर, हेल्पेज आदि संस्थाएं अपने ग्रीटिंग कार्डों से अपने उद्देश्यों के लिए काफी धन जुटा लेती हैं।
संसार का सबसे छोटा बधाई संदेश 20 दिसंबर, 1920 को लंदन की एक कम्पनी ने प्रिंस ऑफ वेल्स को भेजा था, जो चावल के एक दाने पर काली स्याही से लिखा गया था। दूसरी ओर सबसे बड़ा बधाई संदेश 338 मीटर लम्बा है जो सन् 1967 में वियतनाम में लड़ रहे अमेरिकी सैनिकों को भेजा गया था।