दरवाजे की घंटी
Door Bell
(दरवाजा खुलवाने के लिए)
पहले किसी के घर जाने पर दरवाजा खुलवाने के लिए उसे खटखटाना पड़ता था। खटखटाने की आवाज बाहर ज्यादा गूंजती थी और अंन्दर कम जा पाती थी। तब अड़ोस-पड़ोस के लोगों को तो पता चल जाता था कि कोई आया है, पर घर वालों को कई बार काफी देर से पता चल पाता था। ज्यों-ज्यों इलेक्ट्रॉनिक्स का विकास होता गया त्यों-त्यों इस घंटी में भी सुधार होता गया। हालांकि इसका मूल सिद्धान्त अभी अभी वही है, पर अब टन-टन के स्थान पर मधुर ध्वनि, जैसे-चिड़िया की आवाज, कोई गीत-धुन आदि सुनाई देती है।
इस प्रक्रिया में ऊर्जा भी अनावश्यक व्यय होती थी और अटपटा भी लगता था। अतः आविष्कारों ने इसका हल शीघ्र ही निकाल लिया। ज्यों ही विद्युतधारा से चुम्बकत्व पैदा करने की कला विकसित हुई त्यों ही विद्युत घंटी का सर्किट तैयार कर लिया गया। पहले-पहल सामान्य किस्म की घंटी तैयार हुई जिसमें एक पुश बटन था। बटन दबाते ही विद्युतधारा बहती थी, कॉयल के अंदर चुम्बकत्व विकसित हो जाता था और वह आर्मेचर को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। आर्मेचर का दूसरा सिरा एक छोटी सी हथौड़ी से जुड़ा होता था, जो एक कटोरी पर चोट करती थी।
ज्यों ही चोट पड़ती थी, विद्युत परिपथ जाता था। दुबारा बटन दबाने पर पुनः यह प्रक्रिया होती थी। इस तरह दरवाजा खुलवाने का यह विशिष्ट तरीका विकसित हो गया।