बाथ टब
Bath Tub
(नहाने में आनन्द के लिए)
मनुष्य को नहाने में हमेशा से ही आनन्द आता रहा है। उसने नहाने के नए-नए तरीके ईजाद किए। झरनों के नीचे बैठकर नहाना, नदी में डुबकी लगाकर या तैरकर नहाना–ये सब बड़े आनन्ददायक होते हैं। किन्तु हर जगह नदी या झरने नहीं होते हैं। अतः मनुष्य ने दूसरे इंतजाम किए। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई में बड़े-बड़े सार्वजनिक स्नागागार मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि लोग मिलकर जश्नपूर्वक नहाया करते थे।
पानी से भरे बाथटब में नहाने का अलग ही आनन्द है। इस आनन्द की परम्परा लगभग चार हजार वर्ष पुरानी है। पहले लोग छोटे-छोटे बाथटबों में अलग-अलग नहाते थे। ऐसे बाथटब यूनान के एक हिस्से में मिले हैं। बाद में लोग बड़े आकार के बाथ-टबों में मिलकर नहाने लगे। रोम के कारासेला नामक स्थान में इतना बड़ा बाथ-टब मिला है कि उसमें 1600 लोग एक साथ स्नान कर सकते हैं।
मिलकर नहाने का चलन बाद में यूरोप में समाप्त हो गया। दरअसल, अग्रेजों ने नहाना बहुत कम कर दिया। 1000 ईसवी के बाद यूरोपवासियों ने यदा-कदा नहाना प्रारम्भ कर दिया। अब लोगों ने फिर से बाथ-टब बनवाना शुरू कर दिया।
अब आधे आकार के बाथटब बनने लगे। अलबत्ता लोग अलग-अलग आकार के बाथटब बनवाने लगे। कुछ टब जूते के आकार के होते थे तो कुछ आरामदायक कुरसी के आकार के। धीरे-धीरे विभिन्न आकारों के और फव्वारे आदि से युक्त बाथटब तैयार किए जाने लगे।