हिन्दू धर्म में पीपल का वृक्ष पवित्र क्यों माना जाता है?
Hindu Dharam mein Pipal ka Vriksh Pavitra kyo mana jata hai?
पीपल के वृक्ष में अत्यधिक गुण भरे पड़े हैं, इसीलिए इसे ‘गुणों की खान’ भी कहकर पुकारा जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे देश में पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास माना गया है और इसकी पूजा-आराधना भी शायद इसी दृष्टिकोण से की जाती है।
प्राचीनकाल में पीपल को अश्वत्थ कहते थे। इसका अर्थ है-घोड़े के समान। पीपल के पत्तों, शाखाओं, छाल तथा जड़ में अत्यन्त तीव्र गति से रोगों पर अपना प्रभाव डालने की क्षमता है। यही कारण है कि विद्वानों ने पीपल के देवत्व गणों का भरपूर लाभ उठाया है। इसी उद्देश्य से ही जनसाधारण में यह बात प्रचारित की गई कि पीपल के वृक्ष की पूजा-आराधना करने से देवता प्रसन्न होकर धन-धान्य आदि देते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि पीपल के वृक्ष को यदि पानी, खाद आदि पोषक तत्त्व मिलते रहेंगे, तो वह लोगों को अपनी छाया प्रदान करेगा, अपने फल-फूल और कीमती पत्तों से औषध प्रदान करेगा।
पीपल के वृक्ष में विष्णु भगवान् का निवास माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 10, श्लोक 26 के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ। इसलिए आस्तिक हिन्दू पीपल की रक्षा के लिए अपना सिर भी सहर्ष कटाने को तैयार रहता है। स्कन्दपुराण, सागर खण्ड 247, श्लोक 41-44 के अनुसार-‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान् हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्यत सदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमान श्री विष्णुस्वरूप है। महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है।’ पद्मपुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लम्बी होती है। जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है। पीपल में पितरों का वास माना गया है। इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है। इसीलिए मुण्डन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का प्रचलन है।
महिलाओं में यह विश्वास है कि पीपल की निरन्तर पूजा-अर्चना व परिक्रमा करके जल चढ़ाते रहने से सन्तान की प्राप्ति होती है, पुत्र उत्पन्न होता है, पुण्य मिलता है, अदृश्य आत्माएँ तृप्त होकर सहायक बन जाती हैं। कामनापूर्ति के लिए पीपल के तने पर सूत लपेटने की भी परम्परा है। पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। शनि की जब साढ़ेसाती दशा होती है, तो लोग पीपल के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करते हैं, क्योंकि भगवान् कृष्ण के अनुसार शनि की छाया इस पर रहती है। इसकी छाया यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पराणकथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। पीपल के पत्तों से शुभकाम में वंदनवार भी बनाये जाते हैं। वातावरण के दूषित तत्त्वों, कीटाणुओं को विनष्ट करने के कारण पीपल को देवतुल्य माना जाता है। धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे मन्दिर परिसर में अवश्य लगाते हैं। सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है। इसीलिए सूर्योदय से पहले इसकी पूजा करना निषेध किया गया है। इसके वृक्ष को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के तुल्य पाप माना गया है। रात में इस वृक्ष के नीचे सोना अशुभ माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात-दिन निरन्तर 24 घण्टे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है। इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है। इसकी छाया गर्मियों में ठण्डी और सर्दियों में गर्म रहती है। इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण होने के कारण यह रोगनाशक भी होता है। विष्णु को जगत् का पालक कहा गया है। पीपल भी प्राणवायु प्रदाता है, अतः स्वतः ही जगत् का पालक सिद्ध है। निरन्तर अनुसंधानों द्वारा यह भी सिद्ध हुआ है कि पीपल के पत्तों से संस्पृष्ट वायु के प्रवाह व ध्वनि से बीमारी के संक्रामक कीटाणु धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं। वैद्यक ग्रन्थों के अनुसार इसके पत्ते, फल, छाल, सभी रोग-नाशक हैं। रक्त-विकार, कफ, पित्त, दाह, वमन, शोथ, अरुचि, विष-दोष, खाँसी, विषम-ज्वर, हिचकी, उर:क्षत, नासारोग, विसर्प, कृमि, कुष्ठ, त्वचा, वर्ण आदि अनेक रोगों में इसका उपयोग होता है। यही कारण है कि पीपल का वृक्ष हिन्दुओं में अति पवित्र और आदरणीय माना गया है।