हिन्दू चन्दन, भस्म या मिट्टी का तिलक क्यों लगते हैं?

हिन्दू चन्दन, भस्म या मिट्टी का तिलक क्यों लगते हैं?

Hindu Chandan, Bhasam ya Mitti ka tilak kyon lagae hai?

Pauranik-Kahta

शास्त्रों में तिलक-धारण एक आवश्यक धार्मिक कृत्य माना गया है। तिलक के बिना ब्राह्मण चाण्डाल कहा गया है-

स्नानं दान तपो होमो, देवतापितकर्म च।

तत्सर्व निष्फलं याति, ललाटे तिलक बिना।

अर्थात ‘तिलक के बिना सभी द्विजातियों के होम, तपस्या, स्नान, देवता पूजन, पितृकर्म एवं दान (कन्यादान) निष्फल हो जाते हैं।’

हिन्दू शास्त्रों में तो तिलक प्रथा को इतना महत्त्व दिया गया है कि राज्याभिषेक समारोह का नाम ही ‘राज-तिलक’ पड़ गया। तिलक, टीका, बिन्दिया या त्रिपुण्ड-इन सबका सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से है। मस्तिष्क शरीररूपी साम्राज्य का संचालक है। मस्तिष्क का ऊपर वाला बड़ा भाग ‘प्रमस्तिष्क’ कहलाता है। यह भाग शरीर में आने वाले संवेगों या सूचनाओं (इम्पलसिस) को ग्रहण करता है और शरीर के अंगों को सूचनाएँ भेजता रहता है। ‘प्रमस्तिष्क’ मस्तिष्क का वह भाग है, जो मनुष्य को देवता अथवा राक्षस, प्रकाण्ड विद्वान अथवा मूर्ख बना देता है।

यहाँ पिट्यूटरी ग्रन्थि है, जो अंत:स्रावी तंत्र की अधिनायक है। यह कई हारमोंस उत्पन्न करती है, जिससे स्मरण-शक्ति, दृष्टि, श्रवण, घ्राण, संवेदना तथा अन्य बहुत-सी अदृष्ट क्रियाओं का संचालन होता है। हमारे दोनों भौंहों के मध्य ‘आज्ञा-चक्र’ की स्थिति है। इस चक्र पर ध्यान लगाने से साधक का मन पूर्ण शक्तिसम्पन्न हो जाता है। यह एक ऐसा केन्द्र है, जहाँ से समस्त ज्ञान चेतना एवं क्रियात्मक चेतना का समग्र रूप से संचालन होता है। ‘आज्ञाचक्र’ ही दिव्यनेत्र या तृतीय नेत्र है, जिसकी तुलना टेलीविजन, राडार, टेलीस्कोप की समन्वय युक्त शक्ति से की जा सकती है।

यहाँ तिलक लगाने से ‘आज्ञाचक्र’ जाग्रत होगा। आज्ञाचक्र जाग्रत होने से मनुष्य की शक्ति ऊर्ध्वगामी हो जाती है। उसका ओज व तेज बढ़ जाता है। तिलक पर भावनात्मक श्रद्धा होने के कारण व्यक्ति का ध्यान शरीर के अन्य अंगों को छोड़कर मस्तक पर विशेषतः रहेगा, जो व्यक्ति को ‘स्व’ बोध की ओर ले जाता है। फलस्वरूप मस्तिष्क ज्यादा क्रियाशील रहता है।

मस्तक पर तिलक लगाने से निम्नलिखित कार्य होते हैं

(1) शुद्ध मृत्तिका सर्वविधि संक्रामक कीटाणुओं के विनाश की अद्भुत शक्ति रखती है, ऐसा सभी भौतिक विज्ञानवादी मानते हैं।

(2) मृत्तिका के बाद दूसरा स्थान ‘यज्ञ-भस्म’ का है। साधारण राख सिर पर नहीं लगाई जाती। पर यज्ञ देवता की भस्मी प्रसाद रूप में सिर पर धारण करना सौभाग्य-वृद्धि करने के समान पुण्यकार्य माना गया है।

(3) तिलक अनेक प्रकार के होते हैं। ब्रह्मापर्ण (ब्राह्मण भोजन) हेतु किया गया तिलक तीन अँगुली से पूरे ललाट पर बारम्बार किया जाता है। विष्णु के उपासक ऊर्ध्व तिलक दो पतली रेखा में करते हैं। शक्ति के उपासक दो बिन्दी (शिव शक्ति) लगाते हैं तथा महादेव के भक्त त्रिपुण्ड (तीन रेखाओं की आड़) करते हैं।

(4) हमारे ज्ञान-तन्तुओं का विचारक केन्द्र भृकुटि और ललाट का मध्य भाग है। जब हम मस्तिष्क से अधिक काम लेते हैं, तो इसी केन्द्र में वेदना का अनुभव होता है। अतः हमारे महर्षियों ने तिलक धारण का विधान किया। चन्दन की महिमा सभी वैद्य-हकीम-डॉक्टर जानते हैं। मस्तिष्क के केन्द्रबिन्दु पर चन्दन का तिलक ज्ञानतन्तुओं को संयमित व सक्रिय रखता है। ऐसे व्यक्ति को कभी सिर-दर्द नहीं रहता तथा उसकी मेधाशक्ति तेज होती है।

इन्हीं सब कारणों से हिन्दू धर्म में तिलक लगाना महत्त्वपूर्ण माना गया है।

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