ऊँची दुकान, फीके पकवान
Unchi Dukan, Phike Pakwan
अमर और लता दादीजी के पास बैठे थे। तभी दादाजी बाहर से आए और बोले-“आज किसी काम से मुझे रामलाल जी के घर जाना पड़ा। रामलाल जी बड़े मशहूर और अमीर आदमी हैं। लेकिन उन्होंने मुझे पीने के लिए एक बूंद पानी तक नहीं दिया। इसी को कहते हैं-ऊँची दुकान, फीके पकवान!”
लेकिन दादाजी, इसमें दुकान और पकवान की बात कहाँ से आ गई? बताओ न, दादाजी!” अमर ने पूछा।
बेटे, यह एक कहावत है। इसका मतलब यह है कि ये जरूरी नहीं कि जहाँ अधिक दिखावा हो, वहाँ चीज भी अच्छी मिलेगी। इसके पीछे भी एक कहानी है। लो सुनो!” दादाजी ने कहानी शुरू की ।
“एक शहर में एक हलवाई की दुकान थी। उसकी मिठाई बहुत स्वादिष्ट होती थी। इसलिए हलवाई की दुकान काफी मशहूर हो गई थी। लोग दूर-दूर से वहाँ मिठाई खरीदने आते थे। त्योहार के समय तो इतनी भीड़ होती थी कि लोगों को काफी देर तक इंतजार करना पड़ता था। हलवाई और उसके नौकरों का स्वभाव बहुत अच्छा था। जो भी ग्राहक एक बार उस दुकान में चला जाता था, वह उस दुकान का पक्का ग्राहक बन जाता था। ।
“उस दुकान के ठीक सामने एक और हलवाई की दुकान थी। लेकिन न तो उसकी मिठाई इतनी स्वादिष्ट थी और न ही उसका व्यवहार अच्छा था। इसलिए उस दुकान पर बहुत कम ग्राहक जाते थे। उस दुकान का मालिक दिन-भर बैठा-बैठा मक्खियाँ मारता रहता था। वह सामने वाली दुकान पर ग्राहकों की भीड़ देखकर मन-ही-मन जलता रहता था। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने अपनी दुकान तुड़वाकर ऊँचा मचान बनवा लिया। उस मचान पर उसने नई दुकान बनवाई ताकि लोगों को दूर से ही नजर आ जाए। नया शो केस, बढ़िया फर्नीचर, फैंसी लाइटें भी लगवाईं। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए उसने दुकान की बढ़िया साज-सजावट करवा ली। “कहते-कहते दादाजी चुप हो गए।
“फिर क्या हुआ दादाजी?” लता ने पूछा।
हाँ, फिर क्या था! मिठाई की ऊँची और नई दुकान देखकर वहाँ मिठाई खरीदने वालों की भीड़ लग गई। यह देखकर उस दुकान का हलवाई मन-ही-मन बहुत खुश हुआ। लेकिन यह क्या? कुछ देर बाद जब लोगों ने मिठाई खाई तो मुँह बना लिया और हलवाई से लड़ने लगे-‘यह। क्या है? तुम्हारी मिठाइयों में तो स्वाद ही नहीं है। इनमें मीठे का नाम तक नहीं है। ऊँची दुकान फीके पकवान! ऊँची दुकान, फीके पकवान!’ यह कहते हुए लोग जोर-जोर से चिल्लाने लगे।” दादाजी ने अपनी कहानी खत्म की।
“दादाजी, इसका मतलब है कि ऊँची दुकान के मालिक अपनी चमक-दमक और दिखावे से बेचारे ग्राहकों को फंसाकर ठगते भी होंगे।” अमर ने कहा।
“हाँ, बेटा ! क्यों नहीं? इसलिए हमें सावधानी से अपने सामान की खरीदारी करनी चाहिए।” दादाजी ने उत्तर दिया। “दादाजी, इसी तरह कुछ लोग दिखावा तो खूब करते हैं, लेकिन उनका बर्ताव अच्छा नहीं होता। ऐसे लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।” लता बोली।
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