तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर
Tete pav pasariye jeti lambi Sor
एक दिन काम वाली शांतिबाई देर से आई। दादाजी ने पूछ लिया-“क्या हुआ शाति, आज देर कैसे हो गई?”
शांति ने दुखी स्वर में कहा-“क्या बताऊँ, बाबा! आज बेटे के साथ मेरा झगड़ा हो गया। आप तो जानते ही हैं, मेरा पति तो कुछ खास काम-धंधा नहीं करता है। शराब पीकर पड़ा रहता है। मैं घरों में मेहनत-मजदूरी करके घर का खर्च चला रही हूँ। आज मेरा बेटा मोबाइल फोन खरीदने की जिद करने लगा। बाबा, आप ही बताइए, इतने सारे पैसे मैं कहाँ से लाऊँगी ?”
“तुम ठीक कहती हो शांति ! जितनी आमदनी उतना ही खर्च करना चाहिए। इसीलिए तो कहते हैं-तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर।” दादाजी बोले। अमर और लता भी दादाजी के पास बैठे हुए ये बातें सुन रहे थे। अमर ने पूछा-“दादाजी, ये पाँव और सौर का क्या मतलब है?” । “बेटा, इसका सीधा-सा मतलब यह है कि जितनी लंबी रजाई (सौर) हो, उतने लंबे पैर (पाँव) फैलाने चाहिए वरना पैर रजाई से बाहर निकलेंगे। ठीक इसी प्रकार, जितनी आमदनी हो, उसके अंदर ही खर्च करना चाहिए।” दादाजी ने समझाया।
“दादाजी, इस कहावत के बारे में भी कोई कहानी है क्या ? सुनाइए न, दादाजी!” लता ने कहा।
“हाँ, बेटा! सुनो।” दादाजी ने कहना शुरू किया-* एक बार एक गाँव में शहर से बारात आई। सर्दी का मौसम था। बारात के ठहरने का इंतजाम एक धर्मशाला में किया गया। गद्दे बिछाकर रजाइयाँ रख दी गईं। रात को खाना खाने के बाद थके हुए बाराती आराम करने के लिए धर्मशाला में पहुँच गए। बाराती गद्दों पर लेट गए और हँसी-मजाक की। बातें करने लगे। एक बाराती बोला-‘लो भई, आज भगवानदास का तो बाजा बज गया।
तभी दूसरे बाराती ने चुटकी ली-‘फिक्र मत कर, तेरा भी बाजा बजने ही वाला है। एक बुजुर्ग बाराती ने कहा-“अरे बेटा। फालतू की बातें क्यों करते हो? कोई गाना-वाना सुनाओ न।’ यह सुनते ही एक नौजवान बाराती खड़ा होकर नाचने-गाने लगा-“आज मेरे यार की। शादी है। आज मेरे यार की शादी है।’ फिर बुजुर्ग बाराती बोला-‘अच्छा बेटा, यह बताओ कि सर्दी के मौसम में किस चीज के बगैर गुजारा नहीं है?’ इस बात के उत्तर में किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ। तब बुजुर्ग बाराती बोला-‘गलत। सर्दी के मौसम में सबसे जरूरी चीज है सौर यानी । रजाई। बेटा, अब अपनी-अपनी सौर ओढ़ो और सो जाओ।’
इतना सुनते ही सभी बारातियों ने लेटकर अपनी-अपनी रजाई ओढने के लिए खींच ली। कुछ नौजवान बाराती कद में लंबे थे। जब उन्होंने अपनी-अपनी रजाई ओढ़ी तो उनके पैर रजाई से बाहर निकल गए। बस, फिर क्या था। उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया-‘रजाइयाँ छोटी हैं। अब हम कैसे सोएँगे? भैया, सर्दी का मौसम है।’ उनकी बातें सुनकर बुजुर्ग बाराती ने कहा-‘बेटा, चुप करो! रजाइयाँ छोटी नहीं हैं। तुम्हारा कद लंबा है। अरे, भले लोगो, ‘तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर। उस बुजुर्ग बाराती की बात सुनकर नौजवान लड़कों ने अपने पैर सिकोड़ लिए और रजाई ओढ़कर आराम से सो गए।” दादाजी ने कहानी पूरी की।
“दादाजी, मैं तो रजाई में पैर सिकोड़कर ही सोती हूँ।” लता बोली। यह सुनकर दादाजी हँस पड़े। । तभी अमर ने कहा-“दादाजी, यह तो मजाक करती है। वैसे इस कहावत से पता चलता है कि हमें उतना ही खर्चा करना चाहिए जितने पैसे हमारे पास हों। नहीं तो इधर-उधर से उधार लेना पड़ेगा।”
“यानी जो कुछ हमारे पास है, उसी से गुजारा करना चाहिए। तभी हम खुश रह सकते हैं।” लता बोली।