तलवार की धार
Talwar Ki Dhar
महाराणा प्रताप मेवाड़ के प्रतापी शासक थे। उन्होंने कभी भी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की थी । वे जीवन-भर मगलों का डटकर मकाबला करते रहे । अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे मृत्यु-शैया पर पड़े थे। सभी दरबारी और संबंधी उनके पास बैठे थे । वे प्राण नहीं त्याग रहे थे। ऐसा लगता था कि उन्हें कोई ऐसा दुःख है जिसे वे प्रकट नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें कष्ट की दशा में देखकर महारानी ने कहा, “स्वामी, आपने सारा जीवन देश-रक्षा में अर्पण कर दिया । मेवाड़ की सेवा के लिए आप जी-जान से प्रयत्न करते रहे हैं। अब आपको यह कष्ट क्यों हो रहा है ?”
महाराणा बोले, “प्रिय ! मुझे एक चिन्ता है कि मेरे मरने के बाद मेवाड़ की रक्षा कौन करेगा?” उसी समय एक लोहार राणा प्रताप के लिए एक नई तलवार लेकर आया । सभी उपस्थित लोग तलवार की धार परखने की बात करने लगे । एक सैनिक बोला, “इससे रूई काट कर देखनी चाहिए । यदि धार तेज हुई, तो रूई कट जाएगी ।” एक दूसरे सैनिक ने लौकी को काटकर तलवार की धार परखने की बात कही। इस तरह हर कोई अपने-अपने ढंग से तलवार की धार परखने की बात कह रहा था।
उसी समय राणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह उठ खड़े हुए । वे बोले, “तलवार मुझे दो । मैं अभी इसकी धार परखता हूँ।”
इतना कहकर अमर सिंह ने झट तलवार से अपने अंगूठे को काटकर अलग कर दिया । वह बोले, “पिताजी, तलवार की धार वास्तव में तेज है।”
राणा प्रताप अपने पुत्र का साहस देखकर मुस्कुराए । वे समझ गए कि मेवाड़ की शान की रक्षा के लिए उनका पुत्र कोई कसर न छोड़ेगा । इसके बाद उन्होंने तुरन्त अपने प्राण त्याग दिए ।