Hindi Story, Essay on “Rang me Bhang Dalna”, “रंग में भंग डालना” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

रंग में भंग डालना

Rang me Bhang Dalna 

 

एक बार जंगल में पक्षियों की आम सभा हुई। पक्षियों के राजा गरुड़ थे, लेकिन सभी गरुड़ से असंतुष्ट थे। मोर की अध्यक्षता में सभा हुई। मोर ने भाषण दिया-“साथियो, गरुड़जी हमारे राजा हैं, पर मुझे यह कहते हुए बहुत दुःख होता है कि उनके राज में हम पक्षियों की दशा बहुत खराब हो गई है। उसका यह कारण है कि गरुड़जी तो यहाँ से दूर विष्णु लोक में विष्णुजी की सेवा में लगे रहते हैं। हमारी ओर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता। हमें अपनी फरियाद लेकर राजा सिंह के पास जाना पड़ता है। हमारी गिनती न तीन में रह गई है और न तेरह में। अब हमें क्या करना चाहिए, यही विचारने के लिए यह सभा बुलाई गई है।”

हुदहुद ने प्रस्ताव रखा, “हमें नया राजा चुनना चाहिए, जो हमारी समस्याएँ हल करे और दूसरे राजाओं के बीच बैठकर हम पक्षियों को जीव जगत् में सम्मान दिलाए।”

मुरगे ने बाँग दी, “कुकड़ कूँ। मैं हुदहुदजी के प्रस्ताव का समर्थन करता हूँ।”

चील ने जोर की सीटी मारी, “मैं भी सहमत हूँ।” मोर ने पंख फैलाए और घोषणा की, “तो सर्वसम्मति से तय हुआ कि हम नए राजा का चुनाव करें, पर किसे बनाएँ हम राजा?” सभी पक्षी एक-दूसरे से सलाह करने लगे। काफी देर बाद सारस ने अपना मुँह खोला-“मैं राजा पद के लिए उल्लूजी का नाम पेश करता हूँ। वे बुद्धिमान हैं। उनकी आँखें तेजस्वी हैं। स्वभाव अति गंभीर है, ठीक जैसे राजा को शोभा देता है।”

हार्नबिल ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा-“सारसजी का सुझाव बहुत दरदर्शितापूर्ण है। यह तो सब जानते हैं कि उल्लजी लक्ष्मी देवी की सवारी हैं। उल्लू हमारे राजा बन गए तो हमारी गरीबी दूर हो जाएगी।”

लक्ष्मीजी का नाम सुनते ही सब पर जादू सा प्रभाव हुआ। सभी पक्षी उल्लू को राजा बनाने पर राजी हो गए। गत किलिकाकाका
मोर बोला, “ठीक है, मैं उल्लूजी से प्रार्थना करता हूँ कि वह दो शब्द बोलें।”

उल्लू ने घुघुआते हुए कहा, “भाइयो, आपने राजा पद पर मुझे बिठाने का जो निर्णय किया है, उससे मैं गद्गद हो गया हूँ। आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मुझे आपकी सेवा करने का जो मौका मिला है, मैं उसका सदुपयोग करते हुए आपकी सारी समस्याएँ हल करने का भरसक प्रयत्न करूँगा, धन्यवाद।”

पक्षियों ने एक स्वर में ‘उल्लू महाराज की जय’ का नारा लगाया। कोयलें गाने लगीं। चील कहीं से मनमोहक डिजाइन वाला रेशम का शाल उठाकर ले आई। उसे एक डाल पर लटकाया गया और उल्लू उस पर विराजमान हुए। कबूतर कपड़ों की रंग-बिरंगी लीरें उठाकर लाए और उन्हें पेड़ की टहनियों पर लटकाकर सजाने लगे। मोरों की टोलियाँ पेड़ के चारों ओर नाचने लगीं।

मुरगों व शतुरमुरगों ने पेड़ के निकट पंजों से मिट्टी खोद-खोदकर एक बड़ा हवन कुंड तैयार किया। दूसरे पक्षी लाल रंग के फूल ला-लाकर कुंड में ढेरी लगाने लगे। कंड के चारों ओर आठ-दस तोते बैठकर मंत्र पढ़ने लगे।

बया चिड़ियों ने सोने-चाँदी के तारों से मुकुट बुन डाला तथा हंस मोती लाकर मुकुट में फिट करने लगे। दो मुख्य पुजारियों ने उल्लू से प्रार्थना की, “हे पक्षी श्रेष्ठ, चलिए लक्ष्मी मंदिर चलकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।”

निर्वाचित राजा उल्लू पंडितों के साथ लक्ष्मी मंदिर की ओर उड चले। उनके जाने के कुछ क्षण पश्चात् ही वहाँ कौआ आया। चारों ओर जश्न का माहौल देखकर वह चौंका। उसने पूछा, “भाई, यहाँ किस उत्सव की तैयारी हो रही है?”

पक्षियों ने उल्लू के राजा बनने की बात बताई। कौआ चीखा, “मझे सभा में क्यों नहीं बुलाया गया? क्या मैं पक्षी नहीं हूँ?” । कि मोर ने उत्तर दिया, “यह जंगली पक्षियों की सभा है। तुम तो अब अधिकतर कस्बों व शहरों में रहने लगे हो। तुम्हारा हमसे क्या वास्ता?”

उल्लू के राजा बनने की बात सुनकर कौआ जल-भुन गया था। वह सिर पटकने लगा और काँ-काँ करने लगा, “अरे, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, जो उल्लू को राजा बनाने लगे? वह चूहे खाकर जीता है और यह मत भूलो कि उल्लू केवल रात को बाहर निकलता है। अपनी समस्याएँ और फरियाद लेकर किसके पास जाओगे? दिन को तो वह मिलेगा नहीं।”

कौए की बातों का पक्षियों पर असर होने लगा। वे कानाफूसी करने लगे कि शायद उल्लू को राजा बनाने का निर्णय कर उन्होंने गलती की है। धीरेधीरे सारे पक्षी वहाँ से खिसकने लगे। जब उल्लू लक्ष्मी पूजन कर पुजारियों के साथ लौटा तो सारा राज्याभिषेक स्थल सूना पड़ा था। उल्लू घुघुआया, “सब कहाँ गए?”

उल्लू की सेविका खंडरिच पेड़ पर से बोली, “कौआ आकर सबको उल्टी पट्टी पढ़ा गया। सब चले गए। अब कोई राज्याभिषेक नहीं होगा।”

उल्लू चोंच पीसकर रह गया। राजा बनने का सपना चूर-चूर हो गया। तब से उल्लू कौओं का बैरी बन गया और देखते ही उन पर झपटता है।

सीख : रंग में भंग डालने वाले उम्र भर की दुश्मनी मोल ले बैठते हैं।

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