नाच न आवे आँगन टेढ़ा
Nach na Jane Angan Tedha
छुट्टी का दिन था। मौसम सुहावना था। दादाजी और घर के सभी लोग पिकनिक मनाने चले गए। बहुत बड़ा पार्क था। पार्क में एक झील थी। अमर और लता अपने पापा-मम्मी के साथ झील में नाव की सैर कर रहे थे।
दादाजी और दादीजी एक पेड़ के नीचे बैठकर गप्पें मार रहे थे। कुछ। देर बाद सब लोग इकट्टे हो गए। अमर बेटे, आज तो तुम एक गाना सुना दो।” अचानक दादीजी ने अमर से गाना सुनाने की फरमाइश की। यह सुनकर अमर चौंक गया। उसे तो गाना आता ही नहीं था। उसकी सूरत देखकर लता मुस्कराने लगी। उसने सोचा, अब फंस गया बच्चू! कुछ देर चुप रहकर अमर बोला-“दादीजी, आज मेरा गला खराब है। गले में दर्द हो रहा है। फिर कभी सुना दूंगा।” लता बोली-“दादीजी, यह झूठ बोल रहा है। इसे गाना-बाना नहीं आता। बेकार ही अपने गले को दोष दे रहा है।” । “अच्छा बेटा! नाच न आवे, आँगन टेढ़ा। बहाना बना रहे हो।” दादाजी ने कहा।
लेकिन दादाजी, अमर से तो गाना गाने के लिए कहा गया था। फिर नाच और आँगन की बात कहाँ से आ गई?” लता ने दादाजी से पूछा। “बेटा, यह एक कहावत है। जब किसी को कोई काम नहीं आता, तब वह किसी चीज में दोष निकालकर उस काम को न कर सकने का बहाना बनाता है।” दादाजी ने समझाया।
“चलो, तुम्हें इस बारे में कहानी सुनाता हूँ।” दादाजी ने कहना शुरू किया-एक राजा था। वह नाच-गाने का बहुत शौकीन था। उसके दरबार में रोज शाम के समय नाच-गाना होता था। हर रोज नए-नए कलाकार अपनी कला का जादू दिखाने उसके दरबार में आते थे। राजा प्रसन्न होकर उन्हें ढेर सारा इनाम भी देता था। ।“ उसी राज्य में एक बंजारिन रहती थी। उसका नाम था पुतलीबाई । वह बहुत गरीब थी। लेकिन भगवान् ने उसे गोरा रंग और सुंदर रूप दिया थ। उसने भी सुना कि राजा के दरबार में रोज एक नई नर्तकी अपना नाच दिखाती है और राजा उसे ढेर सारा इनाम देते हैं। लेकिन उसे तो नाचना ही नहीं आता था। यह सोचकर बंजारिन उदास हो जाती थी। परंतु इनाम का लालच उसके मन में भर गया था। उसने सोचा-‘क्यों न मैं भी कोशिश करूं?’ नाचना नहीं आता तो क्या हुआ? हो सकता है, महाराज मेरी सुंदरता पर लट्टू हो जाएँ और खुश होकर मुझे भी इनाम दे दें। ।“ यह सोचकर पुतलीबाई ने नहा-धोकर अपना साज-शृंगार किया। सुंदर कपड़े पहने। वह सचमुच परी जैसी लग रही थी। वह सज-धजकर राजदरबार में पहुँच गई। उस सुंदरी को देखकर राजा और सब दरबारी दंग रह गए। तभी राजा ने कहा-‘नाचो सुंदरी! हम तुम्हारा नाच देखना चाहते हैं। यह सुनकर पुतलीबाई के पैर काँपने लगे। उसने नाचने की कोशिश की। एक पैर उठाया तो लड़खड़ा गई। वह नाच नहीं पाई। उसे और कुछ नहीं सूझा तो एक ही जगह पर खड़ी-खड़ी घूमने लगी। घूमते-घूमते उसे चक्कर आ गया और वह धड़ाम से गिर पड़ी। राजा ने पूछा-‘क्या हुआ सुंदरी?’ यह सुनकर पुतलीबाई उठी और हाथ जोड़कर बोली-‘महाराज, मैं कैसे नाचूं? आपके दरबार का आँगन ही टेढ़ा है। यह सुनकर राजा को गुस्सा आ गया और गरजकर बोला-‘नाच न आवे, आँगन टेढ़ा। “दादाजी की कहानी सुनकर सब लोग खुश हो गए। अमर बोलादादाजी, हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि यदि कोई काम नहीं आता, तो बहाना नहीं बनाना चाहिए। इससे अपनी ही बेइज्जती होती है।”