मित्रता सदैव बराबर वालों से करें
Mitrata sadev barabar walo se kare
किसी जलाशय के निकट, एक पेड़ के नीचे बने बिल में एक चूहा रहता था। उस जलाशय में एक मेंढक भी रहता था।
धीरे-धीरे चूहे और मेंढक में गाढी मित्रता हो गई। अब वे दोनों सदैव साथ-साथ रहते। परन्तु मेंढक जब कभी भी पानी में नीचे चला जाता तो चूहे को अकेलापन बहुत अखरता। इसी प्रकार चूहे के भोजन की तलाश में चले जाने पर मेंढक उसका इंतजार करता रहता।। दोनों मित्र अपनी इस समस्या से परेशान थे। एक दिन चूहे को एक उपाय सूझा। वह बोला “क्यों न हम दोनों अपनी-अपनी टाँगे एक रस्सी से बाँध लें। जब तुम्हें मेरी याद आए तो तुम रस्सी खींच कर मुझे बुला लेना और जब मुझे तुम्हारी याद आएगी तो मैं रस्सी खींच कर तुम्हें आवाज दे दूंगा।” उन्होंने वैसा ही किया। वे एक रस्सी लाए तथा रस्सी के दोनों सिरों से अपने-अपने पैर बाँध लिए। अब दोनों बहुत प्रसन्न थे। एक दिन मेंढक परिवार के साथ जलाशय में काफी दूर निकल गया। उसे ध्यान ही नहीं रहा कि उसके पैर में बँधी रस्सी के दूसरे सिरे पर चूहा है। इस कारण चूहा जलाशय में । आ गया। उसने पानी से निकलने का बहुत प्रयास किया, अन्तत: वह पानी में डूबकर मर गया। दूसरी तरफ एक चील ने पानी में तैरते हुए चूहे की लाश देखी और उसे झपटकर उठा ले गई। साथ ही रस्सी से बंधा होने के कारण मेंढक भी चील का शिकार बन गया। मित्रता बराबर वालों से ही करनी चाहिए।