Hindi Story, Essay on “Mendhak aur Raja”, “मेंढक व राजा” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

मेंढक व राजा

Mendhak aur Raja

बहुत दूर, एक दलदल में मेंढकों का एक दल रहा करता था। उन्हें उछलना-कूदना और सारा दिन मस्ती करना बहुत भाता था। वे पानी में उछालें भरते और टर-टर के स्वर के साथ मधुर गीत गाया करते।

एक दिन, वे खेलने के बाद बड़े से पत्ते पर बैठे सुस्ता रहे थे। अचानक एक बड़ा सा मेंढक उछल कर आगे आया और बोला, “मेरे प्यारे मेंढक दोस्तों यह कितनी विचित्र बात है कि हमारा कोई राजा ही नहीं है। जो हम पर शासन करे।”

हम्म….ट…..टर।’ दूसरे मेंढकों ने भी आपस में बातचीत के बाद हामी भरी कि वह ठीक कह रहा था। वे मिल कर भगवान के पास गए और उनसे एक राजा की मांग की। भगवान को उनकी इस मूर्खता पर हंसी भी आई परंतु उन्होंने उनकी बात का मान रखने के लिए पानी में लकड़ी का बड़ा सा लट्ठा फेंक दिया।

लट्टा पानी में छपाक से गिरा तो सारे मेंढक पानी से भीग गए। वे उससे डर कर, दबे पांव पीछे हट गए। वे अब उससे एक सुरक्षित दूरी रखने लगे थे। वे नहीं चाहते थे कि उनके राजा को किसी बात से गुस्सा आ जाए। कुछ समय बीत गया। वह लट्ठा अपने स्थान से नहीं हिला। सबसे बड़े मेंढक ने उसे पास जा कर टहोका दिया। लट्ठे ने कुछ नहीं कहा। फिर वह उस पर चढ़ कर नाचने लगा….और दूसरे मेंढक भी शामिल हो गए। उनके राजा में ऐसा कुछ नहीं था कि वे लोग उससे भयभीत होते।

तो लट्ठा राजा अपने कोने में पड़ा रहा और मेंढक अपनी पुरानी आदतों पर लौट आए। फिर उन्होंने तय किया कि वे भगवान को जा कर शिकायत करेंगे कि राजा उन पर सही तरह से शासन नहीं कर रहा था।

अब यह सुन कर भगवान को बहुत गुस्सा आया। क्या मूर्ख मेंढक देख नहीं सकते। थे कि वे आजादी से कितना अच्छा और प्रसन्नता से भरा। जीवन जी रहे थे? भगवान ने उन्हें सबक सिखाने के लिए। राजा के रूप में एक सारस को भेज दिया।

उस सारस ने क्या किया? वह उन्हें एक-एक कर खा गया, उसने पानी में एक भी मेंढक नहीं छोड़ा।

नैतिक शिक्षाः किसी निर्दयी शासक के होने से बेहतर होगा कि कोई शासक ही न हो।

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