लोभ का फल बुरा होता है
Lobh Ka Phal Bura Hota Hai
एक किसान के पास एक बिगडैल साँड़ था। उसने कई पशु सींग मारकर घायल कर दिए। तंग आकर आखिर उसने साँड़ को जंगल की ओर खदेड़ दिया।
साँड़ जिस जंगल में पहुँचा, वहाँ खूब हरी घास उगी थी। आजाद होने के बाद साँड़ के पास दो ही काम रह गए। खूब खाना, हुंकारना तथा पेड़ों के तनों में सींग फँसाकर जोर-आजमाइश करना। साँड़ पहले से भी अधिक तगड़ा हो गया। सारे शरीर में ऐसी मांसपेशियाँ उभरीं जैसे चमडी से बाहर छलक ही पडेंगी। पीठ पर कंधों के ऊपर की गाँठ बढ़ते-बढ़ते धोबी के कपड़ों के गट्ठर जितनी बड़ी हो गई। गले में चमड़ी व मांस की तहों की तहें लटकने लगीं।
उसी वन में एक गीदड़ व गीदड़ी का जोड़ा रहता था, जो बड़े जानवरों द्वारा छोड़े शिकार को खाकर गुजारा करता था। स्वयं वह केवल जंगली चूहों आदि का ही शिकार कर पाते थे।
संयोग से एक दिन वह मतवाला साँड़ झूमता हुआ उधर ही आ निकला, जिधर गीदड़-गीदड़ी रहते थे। गीदड़ी ने उस साँड़ को देखा तो उसकी आँखें फटी-की-फटी रह गईं। उसने आवाज देकर गीदड़ को बुलाया और बोली,
“देखो तो इसकी मांसपेशियाँ। इसका मांस कितना स्वादिष्ट होगा। आह, भगवान् ने हमें क्या स्वादिष्ट तोहफा भेजा है।”
गीदड़ ने गीदड़ी को समझाया, “सपने देखना छोड़ो। उसका मांस कितना ही चरबीला और स्वादिष्ट हो, हमें क्या लेना।”
गीदड़ी भड़क उठी, “तुम तो भौंदू हो। देखते नहीं, उसकी पीठ पर जो चरबी की गाँठ है, वह किसी भी समय गिर जाएगी। हमें उठाना भर होगा और इसके गले में जो मांस की तहें नीचे लटक रही हैं, वह किसी भी समय टूटकर नीचे गिर सकती हैं। बस हमें इसके पीछे-पीछे चलते रहना होगा।”
गीदड़ बोला, “भाग्यवान ! यह लालच छोड़ो।”
गीदड़ी जिद करने लगी, “अपनी कायरता से तुम हाथ आया यह कीमती मौका गँवाना चाहते हो। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। मैं अकेली कितना खा पाऊँगी?”
गीदड़ी की हठ के सामने गीदड़ की एक न चली। दोनों ने साँड़ के पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया। कई दिन हो गए, पर साँड़ के शरीर से कुछ नहीं गिरा। गीदड़ ने बार-बार गीदड़ी को समझाने की कोशिश की, “गीदड़ी, घर चलते हैं, एक-दो चूहे मारकर पेट की आग बुझाते हैं।”
पर गीदड़ी की अक्ल पर तो परदा पड़ गया था। वह न मानी, “हम खाएँगे तो इसी का मोटा-ताजा स्वादिष्ट मांस। कभी-न-कभी तो यह गिरेगा ही।”
बस दोनों साँड़ के पीछे लगे रहे। आखिर एक दिन भूखे-प्यासे दोनों ही गिर पड़े और फिर कभी नहीं उठे।
सीख : लोभ का फल सदैव बुरा होता है।