लकड़हारा व उसकी कुल्हाड़ी
Lakadhara aur Uski Kulhadi
किसी गांव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह अपनी पुरानी और बिना धार की कुल्हाड़ी से लकड़ियां काट कर अपना काम चलाता था। वह हर रोज बाजार में जा कर उन लकड़ियों को बेच कर कुछ सिक्के कमा लाता। इसी तरह वह बड़ी कठिनाई से अपना गुजारा चला रहा था। एक दिन, वह एक शाख पर बैठा लकड़ी काट रहा था, जिसके नीचे एक बड़ी सी नदी थी। जब वह कुल्हाड़ी चलाने लगा तो अचानक ही वह उसके हाथ से फिसली और नदी में जा गिरी।
हे भगवान! अब क्या होगा? मैं अब बेचने के लिए। लकड़ियां कहां से काटुंगा? मेरे पास तो और कुल्हाड़ी भी नहीं है। मैं तो भूख से ही मर जाऊंगा।’
तभी जल देवता जल से बाहर आए। उनके हाथों में चांदी की कुल्हाड़ी थी। उन्होंने कहा, क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?” बेचारे लकड़हारे ने पूरे जीवन में चांदी की कुल्हाड़ी नहीं देखी थी और वह उसे ले सकता था पर वह एक ईमानदार इस बार जल देवता सोने की कुल्हाड़ी ले कर प्रकट हुए व बोले, “क्या तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
लकड़हारे को तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं आया। सोने की कुल्हाड़ी सूरज की रोशनी की तरह चमचमा रही थी…ये कितनी बेशकीमती होगी! पर वह एक ईमानदार इंसान था और धन का लोभ भी उसे झूठ बोलने पर विवश नहीं कर सकता था।
नहीं जल देवता! यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”
फिर जल देवता वापिस नदी में गए और वहां से पुरानी लोहे की कुल्हाड़ी निकाल लाए। लकड़हारे ने उसे खुशी-खुशी ले लिया। उसकी ईमानदारी से प्रसन्न हो कर, जल देवता ने उसे सोने और चांदी की कुल्हाड़ियां भी दे दीं और इस तरह वह एक पैसे वाला आदमी बन गया।
नैतिक शिक्षाः ईमानदारी एक अच्छी नीति है।