कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
Kuch Pane ke liye Kuch Khona Padta hai
एक छोटा बालक बगीचे में खेल रहा था। उस बगीचे में ढेर सारे पौधे लगे हुए थे उन्हीं में बेर का एक पौधा भी लगा हुआ था। वह पौधा रसीले बेरों से लदा था। पौधे पर लटके हुए बेरों को देखकर बालक के मुँह में पानी आ गया। उन्हें खाने के लिए वह पौधे पर से बेर तोड़ने लगा। यह तो आप सभी जानते ही हैं कि बेर के पौधे में बेर के साथ-साथ कांटे भी लगे होते हैं। सो बेर तोड़ते समय बालक के हाथ में कांटे भी चुभने लगे जिससे उसे दर्द महसूस होने लगा। दर्द होने पर वह बेर तोड़ना छोड़कर रोता हुआ अपनी माँ के पास पहुँचा तथा उन्हें सारी बात बताई। उसकी पूरी बात सुनते के बाद माँ ने बालक के आँसू पोंछते हुए कहा, “बेटा, किसी भी चीज को पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। इस कांटों के दर्द के बदले तुम्हें कुछ रसीले बेर खाने को मिल गए। यह क्या कम है।”
माँ ने बालक को आगे समझाते हुए कहा, “गलती। तुम्हारी है क्योंकि तुम्हारा ध्यान केवल बेरों पर था। अत: तुमने पौधे पर से केवल बेरों को ही तोड़ने का प्रयास किया। यदि तुम चुभने वाले कांटों को ध्यान में रखकर पौधे की शाखा को मजबूती से पकड़ कर बेर तोड़ते तो शायद तुम्हें कांटे नही चुभते। आगे से हमेशा ध्यान रखो कि फूल के साथ काँटें भी होते है।” बालक को माँ की बात समझ में आ गई थी। खतरों का सामना किये बिना कुछ प्राप्त नहीं हो सकता।