Hindi Story, Essay on “Khoda pahad nikla Chuha”, “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

Khoda pahad nikla Chuha

 

दादाजी अखबार पढ़ते-पढ़ते बोले-“ये देखो कैसी खबर है! एक सेठ के घर में चोरी हो गई। चोर ने लाखों के जेवर और रुपये-पैसे उड़ा लिए। पुलिस ने कई जगह छापे मारे। आखिरकार सेठ का नौकर ही चोर निकला।

पुलिस ने काफी देर तक उसके घर की तलाशी ली। लेकिन सिर्फ चाँदी के दो-चार गहने ही मिले। यानी खोदा पहाड़, निकली चुहिया।” आजकल समय खराब है। ज्यादा धन-दौलत जाने के लिए आप होती है।” दादीजी बोली।

“लेकिन दादाजी, पुलिस ने न तो कोई पहाड़ खोदा और न ही चुहिया निकली। फिर आपके कहने का मतलब क्या है?” अमर ने पूछा। “बेटा, यह एक कहावत है। जब किसी काम में बहुत ज्यादा मेहनत करने के बाद भी उसका नतीजा पूरा न निकले, तब ऐसा ही कहते हैं। चलो, तुम्हें इसकी कहानी सुनाता हूँ।” दादाजी ने समझाया। | दादाजी ने कहानी शुरू की-“एक जंगल में गुफा के अंदर कुछ चोरों । ने अपना अड्डा बना रखा था। वे चोरी का माल गुफा के अंदर छिपा देते थे। सोने-चाँदी के जेवर, हीरे-जवाहरात, रुपया-पैसा सब कुछ गुफा में रखते जाते थे। एक चोर दिन-रात गुफा पर पहरा देता था। बाकी चोर शहर में चोरी करने चले जाते थे। चोरी करने से पहले वे अपने शिकार के बारे में सब कुछ पता लगा लेते थे। घर में कितने लोग रहते हैं? कौन कब आता-जाता है? फिर मौका मिलते ही वे चोरी करते और भागकर जंगल में चले जाते। चोरी किया हुआ सारा धन गुफा के अंदर छिपा देते।” दादाजी कुछ देर के लिए रुक गए। फिर उन्होंने कहना शुरू किया, एक बार चोर चोरी करने शहर गए हुए थे। उनका एक साथी गुफा पर पहरा दे रहा था। अचानक उसे कहीं से मुँघरुओं की आवाज सुनाई। दी। आवाज सुनकर चोर चौकन्ना हो गया। उसने चारों तरफ देखा। उसे कुछ नजर नहीं आया। फिर वह गुफा के अंदर गया। उसने सोचा, शायद गुफा के अंदर कोई छिपा होगा। लेकिन काफी देर तक ढूँढ़ने के बाद भी उसे वहाँ कोई नहीं मिला। जब उसके साथी वापस आए तो उसने इस । घटना के बारे में उन्हें बताया। उसके साथियों ने उसकी बात को मजाक में उड़ा दिया।

अगले दिन दूसरे चोर को पहरेदारी का काम सौंपा गया। रात के। समय उसे भी एक-दो बार चुंघरुओं की आवाज सुनाई दी। उसने भी गुफा के अंदर-बाहर और आसपास देखा, लेकिन कुछ नजर नहीं आया। जब उसके साथी आए तो उसने वह घटना उन्हें सुनाई। फिर चोरों का सरदार बोला–“हो न हो, पहाड़ के नीचे से ही आवाज आ रही है। लगता है। पहाड़ के नीचे जरूर धन-दौलत दबी हुई है, जो बाहर निकलने के लिए टपटा रही है। साथियो, हमें इस पहाड़ को खोदना चाहिए।’ यह सुनकर शेष चोरों ने अपने सरदार की हाँ में हाँ मिला दी। बस, फिर क्या था, सारे चोर पहाड़ खोदने में लग गए। खोदते-खोदते सारी रात बीत गई। सुबह तक पहाड़ की खुदाई चलती रही। तभी एक चोर को छोटा-सा सुराख दिखाई दिया। वह चिल्ला उठा-‘सरदार, वो देखो!’ जब सरदार ने देखा तो बोला-‘यहाँ खोदो!’ यह सुनकर चोरों ने उधर खुदाई शुरू कर दी। फिर अचानक उस जगह से एक चुहिया निकलकर भागी। उसके पैर में एक मुँघरू अटका हुआ था। यह देखकर चोरों ने अपने माथे पर हाथ मारा और बोले-‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया!’ इस तरह उन चोरों की सारी मेहनत बेकार ही गई। ”

दादाजी की कहानी सुनकर अमर बोला-“दादाजी, कभी-कभी हमारे साथ भी ऐसा हो जाता है। हम बहुत मेहनत करके पढ़ाई करते हैं, लेकिन फिर भी परीक्षा में अच्छे अंक नहीं मिलते।”

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