खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
Khisyani Billi Khamba Noche
अमर के पिताजी ऑफिस से आए तो किसी बात पर उन्होंने अमर को डाँट दिया। अमर रोने लगा। यह सुनकर दादाजी ने आवाज लगाई–“अरे, क्या हुआ? अमर बेटा, क्यों रो रहे हो?”
दादाजी की आवाज सुनकर लता और उसकी मम्मी आ गए। “पापाजी, आज अमर के डैडी का उनके बॉस के साथ झगड़ा हो गया था। इससे उनका मूड खराब हो गया। इसलिए जरा-सी बात पर उन्होंने अमर को डाँट दिया।” अमर की मम्मी ने कहा।
“अच्छा, तो ये बात है। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।” दादाजी बोले।
“दादाजी, इस बात से बिल्ली और खंभे का क्या लेना-देना है?” लता ने पूछा। । “चलो बेटा, पहले अमर को बुलाकर लाओ। फिर तुम दोनों को इस बारे में कहानी सुनाऊँगा।” दादाजी ने कहा।
लता अमर को बुला लाई। दादाजी ने अमर को अपनी गोद में बिठाया। उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे समझाते हुए बोले-“बेटा, कभी-कभी किसी वजह से इन्सान का मूड खराब हो जाता है, तब वह दूसरों को डाँट देता है या झगड़ा कर बैठता है। इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। जब कोई किसी बेकसूर पर अपना गुस्सा उतारता है तब कहा जाता है कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। चलो, इस बारे में तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।” दादाजी ने कहानी शुरू की एक लड़का था। उसका नाम था राकेश। उसने एक बिल्ली पाल रखी थी। उसका नाम पूसी था। राकेश ने पूसी के लिए अपने घर के पिछवाड़े लकड़ी का एक बड़ा-सा बक्सा रख दिया था। पूसी उस बक्से में रहती थी। राकेश पूसी को बहुत प्यार करता था। वह उसे दूध, मलाई पिलाता-खिलाता था। पूसी भी राकेश को प्यार करती थी। पूँछ उठाकर ‘म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई उसके आगे-पीछे घूमती रहती थी।
कभी-कभी उछलकर राकेश की गोद में बैठ जाती थी। राकेश उसके सफेद चमकीले बालों पर हाथ फेरता रहता था। “एक दिन पूसी ने तीन नन्हे बच्चों को जन्म दिया। राकेश ने देखा तो खुशी से उछल पड़ा। उसके लिए तो मानो तीन खिलौने आ गए थे। बच्चे होने के बाद पुसी दुबली हो गई थी। जब उसे भूख लगती तो वह शिकार के लिए इधर-उधर निकल जाती। एक बार उसने एक मोटा-ताजा चूहा पकड़ लिया और उसे मुँह में दबाकर ले आई। जब वह अपने बच्चों के पास पहुँची तो देखा, उसके दो नन्हे बच्चे खून से लथपथ पड़े थे। उनके आधे शरीर गायब थे। कोई बिल्ला उन्हें खा गया थ। देखते ही। पूसी के होश उड़ गए। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी। उसकी आवाज सुनकर राकेश और घर के लोग बाहर निकल आए। उन्होंने पूसी के मरे हुए बच्चों को देखा तो बहुत दुखी हुए। “पूसी भी बहुत दुखी और परेशान दिखाई दे रही थी। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे। वह एक पेड़ के तने के पास खड़ी होकर अपने नाखूनों से उसे खुरचने लगी। राकेश ने अपनी माँ से पूछा-‘माँ, पूसी क्या। कर रही है? उसकी माँ ने उत्तर दिया-‘बेटा, इस वक्त पूसी को बहुत गुस्सा आ रहा है। वह अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेना चाहती है। इसलिए अपना गुस्सा उतारने के लिए पेड़ के तने को खुरच रही है। इसे कहते हैं-खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे ।’ राकेश ने देखा, पूसी जोर-जोर से पेड़ के तने को खुरच रही थी।” यह कहते हुए दादाजी ने कहानी समाप्त की। । “हाँ, दादाजी! कभी-न-कभी हम सब खंभा नोचते हैं।” लता ने हँसते हुए कहा।
“बेटा, यह बात तो ठीक है। परंतु हमें कभी भी अपने गुस्से की खीझ दूसरों पर नहीं निकालनी चाहिए। इससे नुकसान भी हो सकता है।” दादाजी ने कहा।