कथनी और करनी
Kathni aur Karni
एक गरीब बूढ़ा था। उसके कोई संतान नहीं थी जो बढापे में उसकी देखभाल करती। अत: उसे स्वयं मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पालना पड़ता था। इसलिए वह रोज जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाता तथा उन्हें शहर में बेचता था। इसी से उसका गुजर-बसर हो रहा था। अक्सर परेशानी में वह बूढा एक ही बात कहता, “इससे तो अच्छा है कि यमराज मुझे उठा ले।” एक दिन बूढा बीमार पड़ गया। परन्तु लकड़ियाँ काटने के लिए उसे जगंल तो जाना ही था। वहाँ पहुँच कर उसने जैसे-तैसे लकड़ियाँ काटकर उनका गट्ठर बनाया और उसे उठाकर गाँव की तरफ चल दिया। शीघ्र ही वह थक गया। उसने लकड़ियों का गट्ठर जमीन पर पटकते हुए कहा, इससे तो अच्छा हो यमराज मुझे उठा ही लें।” ठीक उसी समय यमराज वहाँ से गुजरे। बूढे के दर्द भरे शब्द सुनकर उन्हें दया आ गई। उन्होंने सोचा, “क्यों न इस बूढ़े को अपने साथ ले जाऊँ। इसे इसके दर्दो से भी मुक्ति मिल जाएगी।” यमराज बूढे के समक्ष प्रकट हुए और उसे साथ चलने को कहा। बूढ़ा अपनी बात से तुरन्त मुकर गया और कहने लगा “मैंने तो गट्ठर उठाने के लिए। मदद माँगी थी।” यमराज ने लकड़ियों का गट्ठर बूढ़े के सिर पर रखा और हँसते हुए वहाँ से चले गए। कुछ व्यक्तियों की कथनी और करनी में बहुत अन्तर होता है।