कबूतर
Kabootar
किसी राज्य में एक किसान के पास धरती का एक टुकड़ा था। वह वहां खेती करके प्रसन्न नहीं था। उसके खेत में पेड़ पर एक कौआ रहता था। वह उसे बहुत परेशान करता था। प्रतिवर्ष जब भी फसल की कटाई का समय होता तो वह अपने दोस्तों को ले आता और वे मिल कर सारी फसल तहस-नहस कर देते। हर साल इतना नुकसान सहने के बाद किसान ने अंत में तय किया कि वह इस समस्या का हल करने के लिए कोई न कोई उपाय करेगा।
उस साल, किसान ने सारे खेत में दाने बिखेर दिए। उसने उन दानों के आसपास जाल भी बिछा दिया। कौए ने हमेशा की तरह सारे दोस्तों को बुला लिया और वे दानों के लालच में आ गए। जब सारे कौए दाना चुग रहे थे। तो उनमें एक कबूतर भी आ गया। वह भी दाना चुगने लगा। तभी किसान का जाल गिरा और वे सभी पकड़ में आ गए।
जब किसान ने जाल देखा तो उसे कौओं के बीच कबूतर का स्वर सुनाई दिया। उसने झट से जाल में फंसे कबूतर को पहचान लिया। कबूतर बहुत डरा हुआ था। वह तो बेचारा पहली बार खेत में आया था और उसने कभी किसान की फसल को नुकसान भी नहीं किया था इसलिए किसान उसे झट से जाल से बाहर निकाल लिया।
आगे से याद रखना कि कभी दुष्टों की संगति में मत रहना। आज तो तुम्हारी जान बच गई पर ऐसा भी हो सकता था कि इनके साथ-साथ तुम्हारी भी जान चली जाती।” किसान ने उसे चेतावनी दी और आसमान में छोड़ दिया।
इसके बाद किसान ने जाल में फंसे कौओं को उठाया और अपने खेतसे बहुत दूर ले जा कर छोड़ आया।
नैतिक शिक्षाः तुम जिस संगति में रहते हो, उसके लिए तुम स्वयं ही जिम्मेवार हो।