Hindi Story, Essay on “Jaise ko Taisa”, “जैसे को तैसा” Hindi Moral Story, Nibandh, Anuched for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

जैसे को तैसा

Jaise ko Taisa

 

हम जिस प्रकार के व्यवहार की दूसरों से इच्छा रखते हैं उन से वैसा ही व्यवहार करे। छल-कपट से दूसरों को परेशानी में डाल सकते हैं लेकिन अपने लिए भी परेशानी खड़ी हो सकती है।

एक बार मैं किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा पर निकल पड़ा। दूर जाते जाते और घूमने हुए अन्धेरा हो गया। प्रकृति का आनन्द लेता रहा और समय का पता ही न चला। सर्दी का मौसम था। धीमी-धीमी वर्षा हो रही थी और मुझे कहीं भी ठहरने का स्थान न मिला। दूर प्रकाश दिखाई दे रहा था। मैं उसी ओर चल पड़ा। प्रकाश सराय की एक खिड़की से आ रहा था। मैंने पास जाकर दरवाजा खटखटाया। भीतर से आवाज आई, “यह सराय गर्मियों में चालू होती है। यहां कुछ नहीं है। यह आवाज एक चौकीदार की थी। मैंने कहा मैं मुसाफिर हूं। रास्ता भटक गया हूं। रात अन्धेरी है। वर्षा हो रही है। रात भर विश्राम करने के लिए स्थान चाहिए।” अन्दर से आवाज आई, “दरवाजे को ताला लगा हुआ है। इसकी चाबी चाँदी की है जो गम हो चुकी है। अगर आपके पास है तो फैंक दो। द्वार खोल देता हूं।

मैं झट उसकी बात को समझ गया। मैंने सोचा यह लालची चौकीदार है। इसे अवश्य ही पाठ सिखाना चाहिए। मैंने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाल कर दरवाजे के नीचे से फेंक दिए। पैसों की आवाज सुनकर उसने झट से दरवाजा खोल दिया। मैं अन्दर चला गया। थोड़ी देर बाद मैंने चौकीदार से कहा कि मेरा सामान बाहर रह गया है। ज्योंहि वह बाहर गया मैंने भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया। चौकीदार चिल्लाया। बारिश तेज है। सर्दी का मौसम है दरवाजा खोलो। मैंने कहा कि ताला चांदी की चाबी से खुलता है। चाँदी की चाबी दोगे तो ताला खुलेगा। मजबूरवश उसे मेरे दिए गए पैसे वापिस फैंकने पड़े। मैंने दरवाजा खोला तो चौकीदार शर्मिन्दा हो रहा था। सराय में आराम से रात व्यतीत करने पर सुबह होते ही मैं वहां से निकल पड़ा क्योंकि वर्षा थम चुकी थी।

शिक्षा- जैसे को तैसा।

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