हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और
Hathi ke Dant khane ke aur Dikhane ke aur
एक दिन शांतिबाई घर में काम करते-करते अमर की मम्मी से बोली-“बीबीजी, वो धनीराम है न! अपने आपको बड़ा धर्मात्मा समझता है। गरीबों की मदद के लिए बड़ी लंबी-चौड़ी बातें करता है। आज मैंने उससे फिर महीने-भर काम करने के पैसे माँगे, तो वह आनाकानी करने लगा। कई दिन से टाल रहा है।”
अमर की मम्मी बोली-“कुछ लोग ऐसे ही होते हैं। कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।” “बेटा, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता है कि हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और होते हैं। असल में ऐसे लोग दिखावा बहुत करते हैं।” दादाजी बोले । अमर और लता वहीं बैठे अपना स्कूल का काम कर रहे थे। जब उन्होंने दादाजी की बात सुनी तो कुछ हैरान हो गए। आखिरकार लता ने पूछ ही लिया-“दादाजी, आपने कहा कि हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और। तो क्या हाथी के दाँत दो तरह के होते हैं?” । “हाँ, बेटा! यह बात बिलकुल सही है। हाथी के दो लंबे-लंबे दाँत बाहर की तरफ निकले हुए दिखाई देते हैं। वे दाँत सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं। खाने वाले दाँत तो हाथी के मुँह के अंदर होते हैं, जो कि दिखाई नहीं देते। इसीलिए यह कहावत बनी है।” दादाजी ने समझाते हुए उत्तर दिया।
“दादाजी, हमें इस कहावत के बारे में कहानी सुनाओ।” अमर बोला।
दादाजी ने कहानी शुरू करते हुए कहा-4 एक राजा था। उसकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर था। जब जनता के लिए उसका दरबार लगता था, तब वह बड़ी लंबी-चौड़ी बातें और वादे करता था। लोगों को मेहनत और ईमानदारी से काम करने की नसीहत देता था, लेकिन खुद रात-दिन भोग-विलास में डूबा रहता था। जनता की भला। के लिए कभी कोई काम नहीं करता था। राजा के कुछ चापलूस मंत्री उसकी झूठी तारीफ करते रहते थे। लेकिन जनता बड़ी परेशान थी और। राजा के डर से कोई कुछ नहीं कहता था। । राजा को अपने दरबार में नाच-गाना और कलाकारों के करतब देखने का बहुत शौक था। एक दिन एक पहरेदार राजा के पास आया। और बोला-‘महाराज, एक बूढ़ा महावत अपने साथ एक विचित्र हाथी लेकर आया है। वह आपसे मिलना चाहता है। आपकी आज्ञा हो तो उसे आपके सामने हाजिर करूं?’ राजा ने इजाजत दे दी। थोड़ी देर में एक बढ़ा आदमी अपने हाथी के साथ दरबार में आया। हाथी के तो लंनेगै सफेद दाँत बाहर निकले हुए थे। राजा और सभी उस हाथी को देखकर वैरान रह गए। उन्होंने पहले कभी ऐसा हाथी नहीं देखा था। ” दादाजी थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले
“राजा ने बूढ़े से पूछा-‘बाबा, यह तो बड़ा विचित्र किस्म का हाथी है लेकिन हमें एक बात समझ में नहीं आई। जब इस हाथी के दो लंबे-लंबे दाँत बाहर की ओर निकले हुए हैं, तब यह अपना भोजन कैसे खाता होगा?’ यह सुनकर बूढ़ा महावत राजा की अज्ञानता पर मन-ही-मन हँसा और बोला-‘महाराज, क्षमा करें। जो दाँत आप देख रहे हैं, ये तो केवल दिखाने के लिए हैं। इसके खाने वाले दाँत तो मुँह के अंदर हैं, लेकिन वे दिखाई नहीं देते। इसका मतलब है कि जो दाँत दिखाई देते हैं, उनसे यह खाना नहीं खाता और जो दाँत दिखाई नहीं देते, उनसे यह बड़े मजे से खाना खाता है। महाराज, छोटा मुँह और बड़ी बात। क्षमा करें, कुछ लोग ठीक इस जानवर की तरह होते हैं। जो कहते हैं, वो करते नहीं और जो करते हैं, वो कहते नहीं। इसीलिए तो कहते हैं कि हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और।’ बूढ़े महावत की बात राजा के दिल को छू गई। उस दिन के बाद से वह प्रजा की भलाई के कार्य करने लगा और लोग सुख-शांति से रहने लगे” दादाजी की कहानी सुनकर अमर और लता ने खुशी से उछलकर ताली बजाई।
“बेटे, कुछ लोग ऊपर से बहुत भले और धर्मात्मा होने का दिखावा करते हैं, लेकिन अंदर से बहत कपटी होते हैं।” दादाजी बोले ।