Hindi Story, Essay on “Hath Par Dahi Nahi Jamta”, “हाथ पर दही नहीं जमता” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

हाथ पर दही नहीं जमता

Hath Par Dahi Nahi Jamta

 

एक दिन अमर स्कूल से आया और अपना स्कूल बैग एक तरफ रखकर सीधा रसोई में गया। वहाँ उसकी मम्मी खाना पका रही थी। अमर को बहुत जोर से भूख लग रही थी। वह बोला-“मम्मी, बड़ी भूल लग रही। है। अभी तक खाना भी नहीं पका है!”

“बेटा, बस थोड़ी देर में खाना तैयार हो जाएगा। तब तक तुम अपने कपड़े बदल लो और हाथ-मुँह धो लो।” अमर की मम्मी ने कहा। अमर ने जल्दी-जल्दी अपने कपड़े बदले और हाथ-मुँह धोकर दादाजी के पास जाकर शिकायत भरे स्वर में बोला-“दादाजी, देखो न, अभी तक खाना नहीं बना है। बड़ी जोर से भूख लग रही है।” । “बेटा, बन जाएगा।  थोड़ा इंतजार करो। अब हाथ पर तो दही नहीं। जम सकता।” दादाजी ने समझाया। दादाजी, इसका क्या मतलब है?” अमर ने पूछा। “अच्छा बेटा, लता को भी बुला लो।” दादाजी बोले।

अमर ने लता को आवाज लगाई। लता आ गई। अमर ने दादाजी से पूछा-“हाँ, दादाजी! अब बताइए कि हाथ पर दही नहीं जमता का क्या मतलब है?”  “बेटे, इसका मतलब है कि किसी भी काम को पूरा करने में थोड़ा-बहुत वक्त तो लगता ही है। कोई काम पलक झपकते तो नहीं हो सकता न!” दादाजी ने कहा। “तो दादाजी, इसकी कहानी सुनाओ हमें।” लता बोली।

दादाजी ने कहानी की शुरुआत की-“अच्छा तो सुनो। एक जगह। हनुमान जी का बहुत बड़ा मंदिर था। वहाँ मंगलवार और शनिवार को लोगों की बहुत भीड़ होती थी। मंदिर के बाहर हार, फूल और बूंदी के प्रसाद की दुकानें थीं। लोग हनुमान जी के दर्शन के लिए शांतिपूर्वक लाइन में खड़े होकर इंतजार करते थे। एक बार मंगलवार के दिन गंगादास और जमुनादास अपने-अपने घर से मंदिर के लिए निकले। गंगादास का घर मंदिर के पूर्व में था और जमुनादास का घर पश्चिम दिशा में था। दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने चलते हुए मंदिर की सीढ़ियों के । पास पहुँच गए। गंगादास ने मंदिर की सीढ़ी के पास एक सोने का सिक्का पड़ा हुआ देखा। उसी समय जमुनादास की नजर भी उस सोने । के सिक्के पर पड़ गई। दोनों एक साथ सिक्का उठाने के लिए झुके और । एक-दूसरे से टकरा गए। फिर दोनों झगड़ने लगे। गंगाराम ने कहा कि सोने का सिक्का पहले उसने देखा था, इसलिए सिक्का उसका है। जबकि जमुनादास बोला कि सिक्के पर पहले उसकी नजर पड़ी। इसलिए सिक्के पर उसका हक है। उनके झगड़े को देखकर वहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई।” कहते-कहते दादाजी चुप हो गए।

“दादाजी, फिर क्या हुआ?” अमर ने पूछा। “फिर गंगादास बोला-‘चलो, हम आपस में फैसला कर लेते हैं। तम मुझे कोई काम करने को कहो और मैं भी तुमसे कोई काम करने को कहूँगा। जो काम पूरा कर लेगा, यह सोने का सिक्का उसी का हो जाएगा।’ जमुनादास मान गया। उसने गंगादास से कहा- ‘पहले तुम मेरा काम करके दिखाओ। बिना हाथ लगाए सूई में धागा पिरोकर दिखा दो । गंगादास ने सूई को दाँतों से उठाया और जमीन में गाड़ दिया। फिर धागे को दाँतों से पकड़कर थोड़ी कोशिश के बाद सुई में पिरो दिया। वह खडा हो गया और बोला-‘लो जमुनादास, मैंने तुम्हारा काम कर दिया है। अब तुम मेरा काम कर दिखाओ। जरा अपने हाथ पर दही जमाकर तो दिखाओ।’ यह सुनकर जमुनादास हक्का-बक्का रह गया। वह बगलें झाँकने लगा। तभी लोग जोर-जोर से चिल्लाने लगे-‘भाई साहब, हाथ पर दही नहीं जमता। परेशान होकर जमुनादास ने हार मान ली। गंगादास सोने का सिक्का लेकर चल दिया।” दादाजी ने कहानी समाप्त करते हुए कहा। “दादाजी, अब तो खाना पक गया होगा। इतनी देर में तो दही भी। जम जाता!” अमर बोला। उसकी बात सुनकर दादाजी हँस पड़े।। । “अमर बेटा, खाना तैयार है। आ जाओ। लता को भी ले आओ। अमर की मम्मी ने आवाज लगाई।

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