सहज पके सो मीठा होय
Sahaj Pake so Mitha Hoye
एक खरगोश और एक कछुआ दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी। खरगोश की अपनी तेज चाल पर बहुत अभिमान था और कछुए की धीमी चाल का वह बहुत मजाक उड़ाया करता था। एक दिन खरगोश ने कछुए को नीचा दिखाने की भावना से उससे कहा, “आओ मित्र दौड़ लगाएं। देखें कौन जीतता है ? कछुआ भी खरगोश की अपमान भरी बात को कब सहन करने वाला था। उसने खरगोश की चुनौती को स्वीकार किया। एक मील पर पडी एक चटटान को लक्ष्य बिन्दु माना गया। स्पष्ट था कि जो वहां तीव्र गति से अथवा पहले पहुंच जाएगा वह जीत जाएगा, पीछे रहने वाला हारा समझा जाएगा।
दौड़ आरम्भ हुई। कहाँ तेज दौड़ने वाला खरगोश और कहाँ मन्द गति से चलने वाला कछुआ। खरगोश तो अपनी तीव्र गति से कुछ ही मिन्टों में कहीं का कहीं पहुंच गया परन्तु कछुआ धीरे-धीरे अपने गन्तव्य-स्थल की ओर बढ़ रहा था।
खरगोश ने सोचा कछुआ तो अभी पीछे ही होगा। घण्टों में यहाँ पहुंचेगा। क्यों न तबतक मैं इस वृक्ष की छाया में थोड़ा आराम कर लूं। वैसी ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी। कुछ ही देर में कछुआ वहाँ आ पहुंचा। खरगोश को वहाँ सोया देख कर मन ही मन में बहुत प्रसन्न हुआ और निरन्तर आगे बढ़ता रहा। कछुआ अपने लक्ष्य बिन्दु तक खरगोश से पहले पहुंच गया।
उधर कुछ देर बाद खरगोश की नींद टूटी। वह हड़बड़ा कर उठा। वड़ी तेज गति से चट्टान तक पहुंचा। कछुए को वहाँ पहले पहुंचा देख बहुत हैरान हुआ। उसे अपने उपर बड़ा क्रोध आया कि मार्ग में वह सो क्यों गया ? पर अब क्या हो सकता था ? बाजी तो कछुआ जीत चुका था। अतः सत्य है कि धीमे किन्तु निरन्तर आगे बढ़ने वाला दौड़ जीत ही लेता है।
शिक्षा- घमण्डी का सिर नीचा
Ghamandi ka Sir Nicha