एक पंथ दो काज
Ek Panth Do Kaj
शाम का समय था। दादाजी ने आवाज लगाई–“अरे भई, क्या बात है? आज चाय नहीं बनेगी क्या?” दादाजी की आवाज सुनकर दादीजी आई और बोली-“दूध खत्म हो गया है। अमर की मम्मी दूध लेने जा रही है।” “अच्छा!” दादाजी बोले-“मेरी खाँसी की दवा भी मँगवा लेना। एक पंथ, दो काज हो जाएँगे।”
दादाजी, इसका क्या मतलब हुआ?” लता ने पूछा। दादाजी ने समझाया- “बेटा, जब एक उपाय से दो काम किए जाते। हैं, तब कहा जाता है-एक पंथ, दो काज! जैसे तुम्हारे पापा अपने दफ्तर जाते हुए रास्ते में बैंक से पैसे निकालते या जमा करते हैं। या दफ्तर जाते समय रास्ते में बिजली-पानी के बिल जमा कर देते हैं। इस तरह वह दफ्तर तो जाते ही हैं और रास्ते में दूसरे काम भी कर लेते हैं।” “इस कहावत के बारे में कोई कहानी है दादाजी? सुनाओ न!” अमर ने जिद-भरे स्वर में कहा। दादाजी ने बोलना शुरू किया-* पारस देश के राजा प्रताप सिंह थे। एक दिन उन्होंने अपने पुत्र राजकुमार वीर सिंह को बुलाया और उनसे कहा-‘बेटे, कल आपके मामाजी अपनी शादी की रजत जयंती यानी पच्चीसवीं सालगिरह मना रहे हैं। आप उन्हें हम सबकी तरफ से सालगिरह की मुबारकबाद देने के लिए अपनी माताजी को साथ लेकर आओ। कुछ हाथी-घोड़े और हीरे-जवाहरात भी ले जाना और उन्हें उपहारस्वरूप भेंट कर देना। मेरी तरफ से उनसे क्षमा माँगना न भूलना, क्योंकि मैं राज-पाट के जरूरी कार्यों में व्यस्त होने के कारण नहीं जा पा रहा हूँ।।
“राजा ने अपने बेटे से आगे कहा-‘एक काम और करना। रास्ते में चमन रियासत के राजा निर्भय सिंह से जरूर भेंट करना। वह हमारे घनिष्ठ मित्र हैं। उन्हें हमारी ओर से एक चाँदी का संदूक भेंट करना।। उन्हें हमारी तरफ से यहाँ आने का निमंत्रण भी देना कि कभी हमारे यहाँ जरूर पधारें ।
“राजा की आज्ञा के अनुसार राजकुमार अपनी माताजी के साथ उपहार आदि लेकर चल पड़ा। पहले वह सीधे अपने मामा के यहाँ पहुँचा। वहाँ उनकी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी।
वह अपनी बहन रानी सुकन्या और भांजे राजकुमार वीर सिंह से मिलकर बहुत खुश हुए। उपहार में हाथी-घोड़े और हीरे-जवाहरात पाकर तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। अपने मामा की शादी की। सालगिरह के समारोह में भाग लेने के बाद राजकुमार वीर सिंह अपनी वाली के साथ वापस चल पड़े। रास्ते में चमन रियासत के राजा निर्भय से मिलकर उन्हें अपने पिता द्वारा भेजा गया चाँदी का संदूक और निमंत्रण दिया। इसके बाद वह अपनी माताजी के साथ अपने राज्य में लौट आए। राजकुमार ने अपने पिताजी को अपनी यात्रा का सारा हाल सुनाया।
राजा बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने पुत्र को अपने गले से लगाकर कहा-‘शाबाश बेटा, आपने एक पंथ, दो काज कर दिए।’ यह सुनकर राजकुमार और रानी बहुत खुश हुए।” दादाजी ने कहानी समाप्त करते हुए कहा।
“दादाजी, जरूरत पड़ने पर हम भी एक पंथ, दो काज करेंगे।” लता ने कहा।
“हाँ, बेटा! इससे समय की बचत भी होती है, क्योंकि एक ही समय पर दो काम आसानी से हो जाते हैं।” दादाजी बोले