चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
Char din ki Chandni phir andheri raat
दादाजी के मोहल्ले में एक पहलवान रहता था। उसका नाम था घमंडीलाल। वह दूध बेचने का काम करता था। लोगों के साथ बिना बात झगड़ा और मारपीट करता था। एक दिन उसका अपने पड़ोसी भोलाराम से झगड़ा हो गया। घमंडीलाल ने भोलाराम के जवान बेटे को उठाकर नीचे पटक दिया। उसके सिर से खून बहने लगा। लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। कुछ ही देर में पुलिस आ गई।
दरोगा ने घमंडीलाल को डॉट लगाई-“अबे, बड़ा पहलवान बनता है। जवानी का जोश है, ज्यादा दिन नहीं रहेगा। बढ़ापे में जब ढीले हो जाओगे तो कोई घास भी नहीं डालेगा। जानते हो न, चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात।”
पुलिस घमंडीलाल को पकड़कर ले गई। दादाजी ने घर आकर सबको यह घटना सुनाई। अमर से न रहा गया
और बोला-“दादाजी, दारोगा ने उस पहलवान से ऐसा क्यों कहा कि चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात? इसकी क्या कहानी है?” लता ने भी जिद की-“हाँ, दादाजी! सुनाओ न।” ।
दादाजी ने कहानी शुरू की-“ एक राजा था। उसे अँधेरा पसंद नहीं था। उसने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि रात होते ही सभी घरों में रोशनी होनी चाहिए। जिस घर में अँधेरा होगा, उसके मालिक को सजा दी जाएगी। डर के मारे लोगों ने घी के दीये जलाने शुरू कर दिए। राजा का महल तो रात के समय रोशनी से जगमगाता रहता था। ऐसा लगता था मानो हर रात दीवाली मनाई जा रही हो। यह देखकर राजा बहुत खुश होता था।“ कुछ दिनों बाद लोगों के घरों में घी खत्म हो गया, तो उन्होंने तेल के दीये जलाने शुरू कर दिए। लेकिन तेल भी कितने दिन चलता। एक दिन लोगों के घरों में तेल भी खत्म हो गया। फिर उन्होंने मोमबत्तियाँ जलानी शुरू कर दीं। धीरे-धीरे एक दिन ऐसा आया कि मोमबत्तियाँ भी खत्म हो गईं। बस, फिर क्या था! लोगों ने राजा के डर से रात को लकड़ियाँ जलानी शुरू कर दीं। लोगों ने अपने खेतों और जंगल के पेड़ काटने शुरू कर दिए। इस तरह लोगों के घरों में लकड़ियाँ भी खत्म हो गईं।
घी, तेल और लकड़ियाँ खत्म होने से लोगों के घरों में खाना बनना बंद हो गया। बच्चे, बूढ़े और बीमार लोग भूख से मरने लगे। समूचे राज्य में हाहाकार मच गया।” कहते-कहते दादाजी रुक गए। उन्होंने अमर से पानी लाने के लिए कहा। अमर भागकर गया और पानी ले आया। दादाजी ने पानी पिया और एक लंबी डकार ली। “दादाजी, फिर क्या हुआ?” लता से न रहा गया और उसने दादाजी से पूछ ही लिया। “बेटा, उस राज्य में एक प्राचीन मंदिर था।” दादाजी ने अपनी कहानी आगे बढ़ाते हुए कहा-“ एक ज्ञानी साधु-महात्मा उस मंदिर के पुजारी थे।
लोग दुखी होकर साधु-महात्मा के पास आए और उनसे पूछा कि अब वे क्या करें? घी, तेल और लकड़ियाँ समाप्त होने के बाद लोग भूख से मरने लगे हैं। ऐसे में राजा की जिद कैसे पूरी की जाए? उनकी दुःख और दर्द-भरी बातें सुनकर साधु बाबा ने लोगों को समझाया और उनसे कहा कि वे डरें नहीं और अपने-अपने घर चले जाएँ। परंतु लोग नहीं माने। उन्होंने कहा कि राजा के हाथों मरने से अच्छा है कि वे भगवान् के मंदिर में अपनी जान दे देंगे।
“फिर साधु बाबा उन लोगों को अपने साथ लेकर राजा के सामने गए और बोले-“हे राजन, कुदरत और जीवन में होने वाले उतार-चढ़ाव को कोई नहीं रोक सकता। जैसे जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है, उसी प्रकार दिन के बाद रात और फिर दिन होना अनिवार्य है। फिर मृत्यु और अंधकार से डर कैसा? देखो इन निर्दोष लोगों को। आपकी जिद पूरी करने में इनके घर में घी, तेल और लकड़ी खत्म हो गए हैं। लोग भूख से मर रहे हैं।
याद रखो राजन, आज चाँदनी रात है, तो कल अमावस्या जरूर । आएगी। चार दिन की चाँदनी, फिर अँधेरी रात!’ यह सुनकर राजा ने। अपनी जिद छोड़ दी। ” दादाजी ने कहानी खत्म की।
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