भीष्म प्रतिज्ञा
Bhishma Pratigya
एक बार महाराज शांतनु शिकार के लिए यमुना नदी के किनारे गए। वहाँ एक खूबसूरत निषाद-कन्या को देखकर उनके मन में उससे विवाह करने की इच्छा जाग उठी । निषाद-कन्या का नाम सत्यवती था । सत्यवती का पिता शांतनु से अपनी कन्या का विवाह करने को राजी हो गया । परन्तु उसने यह शर्त रखी कि उसकी कन्या का ही पुत्र शांतनु के राज्य का अधिकारी होगा । शर्त सुनकर शांतनु बड़े असमंजस में पड़ गए । वे अपना उत्तराधिकारी पुत्र देवव्रत को बना चुके थे। यदि वे सत्यवती से विवाह करतं तो पुत्र के साथ अन्याय होता । यह सोचकर वे बहुत दु:खी रहने लगे।
पिता का दु:ख देवव्रत से नहीं देखा गया । वे मंत्री से पिता के दु:ख का कारण जानकर सीधे निषाद के पास गए और बोले, “आप अपनी कन्या का विवाह महाराज शांतनु से कर दें । मैं राज्य से अपना अधिकार छोड़ता हूँ। आपकी कन्या का पुत्र ही महाराज शांतनु के बाद हस्तिनापुर का राजा होगा।”
राजकुमार देवव्रत की बात सुनकर निषाद आश्चर्यचकित हो गया। कुछ सोचकर बोला, “राजकुमार ! आपकी बात पर मुझे विश्वास है किन्तु आपके पत्र ने यदि राज्य का दावा किया तो मेरी कन्या के पुत्र का क्या होगा?”
निषाद की बात का रहस्य देवव्रत तुरंत समझ गए । उन्होंने कहा, “निषादराज, सूर्य-चंद्र आदि सभी देवों को साक्षी बनाकर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं विवाह नहीं करूँगा और आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा । पिता के सिंहासन पर आपकी कन्या के पुत्र का ही अधिकार होगा और मैं सदा सिंहासन पर बैठे हुए राजा की सेवा में लगा रहूँगा । चाहे प्रकृति के सारे नियम बदल जाएँ, पर मैं अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहूँगा।”
देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा को सुनकर सभी चकित रह गए । इस भीपण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम ‘भीष्म’ पडा।