भैंस के आगे बीन बजाना
Bhains ke Agae Been Bajana
एक दिन अमर और लता दादीजी के पास बैठे बातें कर रहे थे। बाहर से दादाजी आए और बोले-“आज पार्क में एक महात्मा जी कथा सुना रहे हैं। जानते हो, मैंने वहाँ क्या देखा? कुछ लोग बैठे-बैठे ऊँघ रहे थे। लगता है, महात्मा जी की ज्ञान-ध्यान की बातें उनकी समझ से बाहर थीं। ऐसे लोगों को भाषण देने का मतलब है-भैंस के आगे बीन बजाना।”
दादाजी, इस कहावत के बारे में भी कोई कहानी है क्या?” लता ने पूछा। दादाजी बोले-” हाँ, बेटा! इस कहावत की भी एक रोचक कहानी है। सुनो! एक गाँव में दीनानाथ नामक गरीब किसान रहता था। उसने एक भैंस पाल रखी थी। उसका दूध बेचकर वह अपने परिवार की गुजर-बसर करता था। दीनानाथ अपनी भैंस की बहुत सेवा करता था। वह सोचता था कि मेरी भैंस एक जानवर है तो क्या हुआ, मेरे घर का खर्च तो इसी की वजह से चल रहा है। “ एक दिन अचानक दीनानाथ की भैंस ने दूध देना बंद कर दिया। दीनानाथ परेशान हो गया। उसने सोचा, यदि भैंस दूध नहीं देगी, तो घर का खर्च चलाने के लिए पैसा कहाँ से आएगा? उसका परिवार क्या खाएगा? यह सोचकर वह बहुत दुखी हो गया। उसने अपनी भैंस को बहुत लाड़-प्यार किया, लेकिन भैंस टस से मस नहीं हुई। उसने एक बूंद भी दूध नहीं दिया।
जब आस-पड़ोस के लोगों को पता चला तो उसके घर में भीड़ इकट्ठी हो गई। लोग तरह-तरह की सलाह देने लगे। किसी ने कहा-“अरे, कहीं कोई टोना-टोटका तो नहीं कर गया? शायद इसीलिए बेचारी भैंस का दूध सूख गया है। फिर झाड़-फेंक करने वाले बाबा को बुलाया गया। बाबा ने भैंस के आगे नारियल फोड़ा, नीबू काटा, सिंदूर लगाया आर मोरपंख कर झाडू से भैंस को झाड़ा दिया। लेकिन इस सबका भैंस के ऊपर कोई असर नहीं हुआ। तब किसी ने कहा-‘हमें तो लगता है, बेचारी बीमार हो गई है। फिर क्या था? गाँव के वैद्य को बुलाया। गया। उन्होंने भैंस की अच्छी तरह जाँच की और बोले कि भैंस बिलकल ठीक है।
इसे कोई बीमारी नहीं है।” कहते-कहते दादाजी कुछ देर चप। रहे। फिर बोले। “ धीरे-धीरे यह खबर पूरे गाँव में फैल गई। इसलिए लोग तमाशा देखने के लिए चले आ रहे थे। भीड़ बढ़ती जा रही थी। तभी भीड़ में पीछे से कोई चिल्लाया-‘भैया, ऐसा लगता है कि भैसिया को किसी की नजर लग गई है। इसकी नजर उतार दो। फिर भैंस की नजर उतारी गई । उसके ऊपर घुमाकर लाल मिर्च जलाई गई। कपड़े की कतरनें जलाई गई। लेकिन मैंस ने दूध नहीं दिया। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। जितने मुंह, उतनी बातें! जिसने जो कहा, बेचारे दीनानाथ ने वैसा ही की किया।
“थोड़ी देर बाद भीड़ में से एक आदमी बोला-भाइयो, आपने देखा है कि सॉप बीन की धुन पर कैसे मस्त हो जाता है! बीन बजाकर संपरा उसे अपने वश में कर लेता है। मेरे खयाल से भैंस के आगे बीन बजाई। जाए तो यह जरूर दूध देगी।’ बस, फिर क्या था? एक सँपेरे को बुलाया गया। सँपेरे ने भैंस के आगे बैठकर बीन बजाना शुरू कर दिया। बीन बजाते-बजाते काफी समय बीत गया। सँपेरे का मुँह भी दर्द करने लगा। लेकिन भैंस पर बीन का कोई असर नहीं हुआ। उसने दूध नहीं दिया। यह देखकर लोग चिल्लाने लगे-‘भैंस के आगे बीन बजाना बेकार है जी!’ दादाजी ने कहानी पूरी की।
अमर बोला-“दादाजी, भैंस के आगे बीन बजाना बेकार ही नहीं, बेवकूफी भी है।” यह सुनकर लता ने कहा-“कभी-कभी कुछ लोग अच्छी बात को समझने की कोशिश ही नहीं करते। उनसे बात करना ही बेकार है। वे हमारा समय खराब करेंगे। है न, दादाजी!”