Hindi Story, Essay on “Behti Ganga me Hath Dhona”, “बहती गंगा में हाथ धोना” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

बहती गंगा में हाथ धोना

Behti Ganga me Hath Dhona

 

दाजी बाहर से आए और दादीजी से बोले-“अरी भागवान, हमारे घर के पीछे पार्क में आँखों के मुफ्त इलाज और जाँच का कैंप लगा हुआ है। चलो। तुम भी अपनी आँखें चैक करवा लो और बहती गंगा में हाथ धो लो।”

दादाजी के पास ही अमर और लता बैठे हुए दादाजी की बात सुन रहे थे। लता ने कहा-“दादाजी, यह आप क्या कह रहे हैं? बहती गंगा में हाथ धो लो? यहाँ कोई गंगा नदी बह रही है क्या?”

“अरे बेटे, ऐसी बात नहीं है।” दादाजी ने उत्तर दिया-“असल में मौके का फायदा उठाने को ही बहती गंगा में हाथ धोना कहते हैं। यह एक कहावत है।” फिर तो इसके पीछे भी कोई कहानी होगी। है न, दादाजी ? हमें वो कहानी सुनाओ न!” अमर ने जिद-भरे स्वर में कहा।

दादाजी बोले-“लो सुनो। एक सेठजी थे। उनका नाम था सेठ धनीराम। उनका बड़ा परिवार था। पाँच बेटे और तीन बेटियाँ थीं। सब शादीशुदा थे और उनके बाल-बच्चे भी थे। एक दिन लंबी बीमारी के बाद सेठजी का निधन हो गया। उनके बेटों ने सम्मानपूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया। परिवार के सभी लोग, यानी बेटे, बहुएँ, बेटियाँ और उनके बच्चे आदि सेठजी की अस्थियों को गंगाजी में प्रवाहित करने के लिए हरिद्वार गए।” कहते-कहते दादाजी खाँसने लगे।

“दादाजी, मैं अभी आपके लिए पानी लाता हूँ।” कहते हुए अमर गया और एक गिलास पानी ले आया। दादाजी ने धीरे-धीरे पानी पिया और फिर बोलना शुरू किया-सभी लोगों ने हरिद्वार पहुँचकर गंगाजी में स्नान किया। फिर सब लोगों ने गंगा के तट पर बने मंदिरों में देवी-देवताओं के दर्शन किए। गंगा मैया के मंदिर में पूजा-अर्चना की। उसके बाद सेठजी के बड़े लड़के ने कहा कि चलो, पिताजी का पिंडदान भी करना है। पंडित जी इंतजार कर रहे हैं।“ सब लोग श्रद्धा भाव से गंगा के तट पर एक जगह बैठ गए, जहाँ । पडित जी उनका इंतजार कर रहे थे। पंडित जी ने पूछा कि क्या सब लोग। गंगाजी में स्नान कर आए हैं? सेठजी के बड़े बेटे ने कहा-‘हाँ, पंडित जी। सब लोगों ने लान कर लिया है और मंदिरों में देवी-देवताओं के दर्शन भी। कर आए हैं। पंडित जी बोले-‘चलो, अच्छी बात है। मनुष्य को अपने जीवन में भगवान् का ध्यान जरूर करना चाहिए। जो सच्चे मन से उस परमपिता परमेश्वर को याद करता है, उसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। जो उसकी शरण में चला जाता है, वह उसी का हो जाता है। सेठ धनीराम जी एक बहुत ही नेक इंसान थे। उन्होंने अपने जीवन में धर्म-कर्म किया। ऐसी पण्य आत्मा स्वर्ग में ही जाती है। आओ, हम सब उनका ध्यान करें।

और ईश्वर से प्रार्थना करें कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। पहले पजा संपन्न कर लेते हैं, फिर पिंडदान करेंगे। आप सब लोग अपने हाथ धो लीजिए। बस, फिर क्या था! एक-एक करके सब लोग उठे और पानी के लिए इधर-उधर देखने लगे। किसी ने पूछा-‘पंडित जी, यहाँ पानी का नल नहीं है क्या? हाथ कहाँ धोएँ?’ यह सुनकर पंडित जी जोर से हँसे और बोले-‘अजी, आपने भी कमाल की बात कही। आप लोग परेशान क्यों हो रहे हो? देखो न, गंगा मैया बह रही है। आप सब लोग बहती गंगा में हाथ धो लो!’ फिर सब लोगों ने बहती गंगा में हाथ धोए। पंडित जी ने पूजा-पाठ के बाद सेठजी का पिंडदान करवाया। ” दादाजी ने कहानी समाप्त करते हुए कहा।

तभी वहाँ दादीजी आई और बोलीं-“चलो, चाय तैयार है। अंदर अमर के डैडी और मम्मी इंतजार कर रहे हैं।” “हाँ, दादाजी! चलो, हम भी बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं।” लता बोली। यह सुनकर सब जोर से हँस पड़े।

Leave a Reply