बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
Bander kya jane Adrak ka Swad
एक दिन दादीजी सत्संग में महात्मा जी का प्रवचन सुनकर घर आईं तो, दादाजी से बोली-“अजी, घोर कलियुग आ गया है। कुछ लोगों को तो धरम-करम की परवाह ही नहीं है।” अरी भागवान, क्या हुआ?” दादाजी ने पूछा। “अब क्या बताऊँ? महात्मा जी भागवत कथा सुना रहे थे। बड़ा ही आनंद आ रहा था। लेकिन कुछ औरतें और आदमी नीची गरदन करके ऊँघ रहे थे। उन्हें तो दीन-दुनिया की खबर ही नहीं थी।” दादीजी ने उत्तर दिया। । “इसी को कहते हैं, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद !” दादाजी ने कहा-“कुछ मूर्ख लोग ज्ञान-ध्यान की बातों को नहीं समझते और न ही गुणवान का आदर करते हैं। ऐसे नादान लोग अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं।
“दादाजी, आपने कहा कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। जबकि दादीजी तो सत्संग की बात कर रही थीं। फिर आपने बंदर और अदरक की बात किसलिए कही?” लता ने पूछा। दादाजी बोले-“बेटा, यह एक कहावत है। जब कोई व्यक्ति दूसरों के अच्छे विचारों को नहीं मानता या उनका आदर नहीं करता, तब ऐसा ही कहा जाता है। हर एक इनसान में गुण भी होते हैं और कुछ बुराइयाँ भी होती हैं। हमें उसके गुणों को पहचानकर अपनाना चाहिए। बुराइयों को छोड़ देना चाहिए। इस संसार में कोई भी सर्वगुण संपन्न नहीं है।”
“दादाजी, हमें इसके बारे में कहानी सुनाओ।” अमर ने कहानी सुनने की इच्छा जाहिर करते हुए कहा। “अच्छा, ठीक है, सुनो!” दादाजी बोले-“हीरालाल ठेले पर फेरी लगाकर सब्जियाँ बेचने का काम करता था। वह सब्जी मंडी से हरी-भरी ताजी सब्जियाँ लाता था और फेरी लगाकर आवाज देता हुआ उन्हें बेचता था। आलू, गोभी, साग, लौकी, प्याज, टमाटर, अदरक आदि। उसकी आवाज सुनकर इधर-उधर से लोग सब्जी खरीदने चले आते। हीरालाल का स्वभाव भी बहुत अच्छा था। वह बहुत मीठा और आदर से बोलता था।”
कहानी सुनाते हुए अचानक दादाजी को खाँसी आ गई। “ठहरो दादाजी, मैं आपके लिए पानी लाता हूँ।” अमर ने कहा और दौड़कर एक गिलास पानी ले आया। दादाजी ने पानी पिया और फिर कुछ। देर बाद बोले “हीरालाल सब्जी बेचते समय उनके गुणों के बारे में भी बताता था। कौन-सी सब्जी क्या फायदा पहुँचाती है, उसे सब पता था। इसलिए ग्राहक उसे बहुत चाहते थे। एक बार किसी ग्राहक ने हीरालाल से पूछ लिया कि अदरक खाने से क्या फायदा होता है? बस, फिर क्या था? हीरालाल ने अदरक के गुणों का बखान कर दिया। वह बोला-‘बाबूजी, अदरक तो बहुत सारी बीमारियों को दूर भगाता है। इसे खाने से पेट की तकलीफें ठीक होती हैं। पेट और आँतों के घाव ठीक हो जाते हैं। इतना ही नहीं, यह सर्दी, फ्लू, जोड़ों के दर्द और दिल की बीमारियों को ठीक करने में भी फायदा पहुँचाता है। बाबूजी, अदरक तो एक कुदरती दवाई है। उसी समय पेड़ के ऊपर से एक मोटा बंदर हीरालाल के सब्जी के ठेले पर कूदकर बैठ गया। बंदर को देखकर हीरालाल की डर के मारे घिग्गी बँध गई। बंदर ने आलू-प्याज उठा-उठाकर इधर-उधर फेंकने शुरू कर दिए। उसने लौकी उठाई और खाने लगा। दो-तीन टमाटर खाए। फिर उसने अदरक उठाया। लेकिन जैसे ही उसने अदरक मुँह में डाला, उगल दिया और ‘चीं-चीं करने लगा। उसने अपनी चमकदार आँखों से हीरालाल को घूरा। फिर अदरक से भरी हुई टोकरी उठाई और जमीन पर फेंक दी। बंदर गुर्राता हुआ पेड़ पर चढ़ गया।” कहते-कहते दादाजी रुक गए।
फिर क्या हुआ, दादाजी?” लता ने पूछा। बस, फिर क्या होना था! बंदर की हरकतों को देखकर हीरालाल बोला-‘देखा बाबूजी! बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद!’ फिर उसने अपनी सब्जियाँ बटोरीं और आगे चल दिया।” दादाजी ने कहानी समाप्त की। अमर और लता कहानी सुनकर बहुत खुश हो गए।