बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी
Bakre ke Maa kab tek kher Manayegi
अमर और लता स्कूल से आकर सीधे दादाजी के पास गए। अमर बोला-“दादाजी, पता है, आज हमारे स्कूल में क्या हुआ? एक लड़का है विनोद। वह बहुत शरारती है। सबके साथ मारपीट करता है। आज उसने एक लड़के को मारा, पीटा और उसका सिर फोड़ दिया।” बीच में ही लता बोल पड़ी-“हाँ, दादाजी! प्रिंसिपल सर ने तो उसे स्कूल से ही निकाल दिया है।”
“बेटा, जो अपराध करेगा, उसे सजा तो मिलेगी ही। आखिरकार बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी?” दादाजी ने समझाते हुए कहा। “बकरे की माँ? दादाजी, बकरे की माँ की क्या कहानी है? सुनाओ न!” अमर ने आग्रह किया। दादाजी बोले-एक गाँव में रामदीन नामक गड़रिया रहता था। उसने भेड़-बकरियाँ पाल रखी थीं। वह बकरियों का दूध निकालकर बेचता था। भेड़-बकरियों के बाल काटकर बाजार में बेच देता था। साल में एक बार पशुओं का मेला लगता था। मेले में वह भेड़-बकरियाँ बेचने के लिए ले जाता था। इस प्रकार रामदीन के परिवार की गुजर-बसर हो। रही थी। उसने अपने घर के पिछवाड़े खुली जगह में भेड़ और बकरियों के लिए अलग-अलग बेड़े बना रखे थे। बकरियों के बेड़े में एक सफेद रंग की ऊँची और ताकतवर बकरी भी थी। रामदीन प्यार से उसे ‘गौरी’ कहकर बुलाता था।
गौरी झगड़ालू किस्म की बकरी थी। वह उछलकर दूसरी बकरियों को सींग मारती थी। इसलिए ज्यादातर बकरियाँ उससे डरती थीं। गौरी का एक बच्चा था। वह छोटा-सा बकरा था। वह इधर-उधर उछलता-कूदता रहता था। रामदीन ने उसका नाम रखा था-छोटू। अपनी माँ की तरह छोटू भी एकदम सफेद रंग का था। वह अपने जैसे छोटे बकरे-बकरियों के साथ खेलते-खेलते लड़ पड़ता था। जब कोई उसका मुकाबला करता, तो उसकी माँ गौरी दौड़कर आती और अपने लंबे नुकीले सींग मार-मारकर उसे भगा देती।” कहते-कहते दादाजी कुछ देर के लिए रुक गए।
दादाजी, फिर क्या हुआ?” लता ने पूछा। दादाजी बोले-“ फिर ऐसे ही दिन बीतते गए और छोटू भी अपनी माँ की तरह ऊँचा और तगड़ा हो गया। उसके सींग लंबे और नुकीले थे। एक बार गाँव में पशुओं का मेला लगा।
रामदीन छोटू और उसकी माँ गौरी को कुछ और भेड़-बकरियों के साथ मेले में ले गया। उसने सोचा-‘पूरे मेले में छोटू जैसा खूबसूरत और तगड़ा बकरा नहीं है। इसे बेचकर अच्छे दाम मिल जाएँगे।’ गौरी उदास हो गई थी। मेले की चहल-पहल और अन्य पशुओं को देखकर उसे शक हो गया कि दाल में कुछ काला है। वह मन-ही-मन डर रही थी कि कहीं कोई खरीददार छोटू को पसंद करके न ले जाए। मेले में पहुँचकर रामदीन अपनी भेड़-बकरियों के साथ एक खुली जगह पर बैठ गया। धीरे-धीरे वहाँ लोगों की भीड़ जमा हो गई। जो कोई गौरी और छोटू को देखता, तो कुछ देर के लिए जरूर रुक जाता। लोग छोटू की बोली लगाने लगे। अंत में एक आदमी ने सबसे बड़ी बोली लगाई। उसने रामदीन को पैसे दे दिए और छोटू की रस्सी पकड़कर खींचने लगा। लेकिन छोटू ने जमीन में पैर गाड़ लिए और अड़ गया। गौरी भी खड़ी हो गई और उसने उछल-उछलकर सींग मारने शुरू कर दिए। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। तभी उस आदमी ने एक झटके के साथ रस्सी खींची और छोटू को घसीटता हुआ ले गया। यह देखकर वहाँ खड़े हुए लोग कहने लगे-“अरे भैया, बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी?’ इस तरह छोटू अपनी माँ से बिछुड़ गया।”
दादाजी ने कहानी पूरी की। इसका मतलब है कि कोई हमेशा अपनी मनमानी नहीं कर सकता। एक न एक दिन तो उसे फल भोगना ही पड़ेगा।” लता बोली।