अपने मुँह मियाँ मिट्ठू
Apne Muh Miya Mitthu
अमर और लता दोनों भाई-बहन स्कूल से घर आए। लता ने अपना बैग रखा और दौड़ती हुई दादाजी के पास गई और बोली-“दादाजी, पता है, आज मैडम ने अमर भैया को क्या बोला?”
दादाजी ने चौंककर पूछा-“क्या?” लता बोली-“दादाजी, मैडम ने अमर भैया से कहा कि वह अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनते हैं। दादाजी, इसका क्या मतलब है?”
दादाजी ने समझाया-“बेटा, इसका मतलब है-अपनी तारीफ खुद करना कछ लोग अपने बारे में बढ़-चढ़कर बातें करते हैं। चलो, तम्हें इस बात पर एक कहानी सुनाता हूँ। अमर को भी बुला लो।” लता अमर को बुला लाई। दोनों भाई-बहन दादाजी के सामने बैठ गए। लता बोली-“दादाजी, अब सुनाओ कहानी ।”
दादाजी ने कहानी शुरू की-“ एक राजा था। उसके पास एक तोता था। वह सोने के पिंजरे में रहता था। अच्छे-अच्छे और स्वादिष्ट मेवे व फल खाता था। राजा-रानी तोते को बहुत प्यार करते थे। कहीं तोता उड न जाए, उस डर से वे न तो कभी उसे पिंजरे से बाहर निकालते और न ही पिंजरे को महल के बाहर ले जाते। तोता हमेशा अपनी तारीफ में गाना गाता रहता–
मैं राजा का तोता हूँ, मैं महलों में सोता हूँ।
मेवे-फल मैं खाता हूँ, गीत खुशी के गाता हूँ।
मेरा पिंजरा सोने का, डर नहीं मुझे शिकारी का।
मैं राजा का प्यारा हूँ, सारे जग से न्यारा हूँ।
राजा के बगीचे में पेड़ों पर ढेर सारे तोते रहते थे। वे रोजाना राजा के तोते का गाना सुनते। वे सोचते थे कि राजा का तोता कितना मूर्ख है। महल और सोने के पिंजरे की चमक-दमक के आगे वह भूल गया है। कि राजा ने उसे अपने मन को बहलाने के लिए कैद कर रखा है। उसे क्या पता कि ताजी और खुली हवा का आनंद क्या होता है! खुले गगन में उड़ना कितना अच्छा लगता है और वह कितना घमंडी है, जो अपनी तारीफ खुद करता रहता है। एक दिन कुछ तोते महल के अंदर चले गए। राजा का तोता बाहर से आए तोतों को चिढ़ाने के लिए बार-बार अपना गाना गाने लगा। इस पर बाहर से आए तोते जोर-जोर से हँसने लगे और बोले
मन मरजी के राजा हम, खुले गगन में रहते हम।
सब कुछ खाते-पीते हम, गीत प्यार के गाते हम
सारी दुनिया महल हमारा, बाग-बगीचे जंगल सारा।
अपने मुँह मियाँ मिट्टू,तुम हो राजा के पिट्ठू
राजा के तोते को बार-बार अपने मुँह मियाँ मिट्ठू’ कहते हुए सारे तोते एक-एक करके उड़ते हुए बाहर चले गए।” दादाजी ने कहानी खत्म करते हुए कहा। कहानी सुनकर लता उछल पड़ी और बोली-“दादाजी, अब मैं समझ गई। हमें अपने मुँह मियाँ मिट्ठू नहीं बनना चाहिए, नहीं तो लोग हमारा मजाक उड़ाएँगे।” “हाँ, बेटा! तुमने ठीक कहा। वास्तव में हमें अच्छे काम करने चाहिए, जिससे देखने वाले लोग खुद हमारी तारीफ करने लगें। हमारा स्वभाव,
चरित्र और गुण ऐसे होने चाहिए जो दूसरों के लिए मिसाल बन जाएँ।” दादाजी ने समझाते हुए कहा।