अंत भला तो सब भला
Ant Bhala to Sab Bhala
अमर और लता कुछ बच्चों के साथ घर के बाहर खेल रहे थे। तभी वहाँ एक साधु बाबा आए। साधु बाबा कहते हुए जा रहे थे-“बेटा, साधु को कुछ दान करो। आटा दो, रोटी दो। भगवान् तुम्हारा भला करेगा। अंत भला तो सब भला! अंत भला तो सब भला !” अमर और लता दोनों ने ही साधु बाबा की बात बड़े ध्यान से सुनी। दोनों दादाजी के पास गए और बोले-“दादाजी, दादाजी! साधु बाबा ऐसा क्यों कह रहे हैं कि अंत भला तो सब भला? इसका क्या मतलब है?
दादाजी ने समझाते हुए कहा-“जब कोई भी अच्छा और भलाई का काम किया जाता है, तो उसका अंत भी अच्छा ही होता है। साधु बाबा के कहने का मतलब है कि हम दान करेंगे तो
भगवान् हमें इसका अच्छा फल देंगे।” “दादाजी, इस कहावत के पीछे क्या कहानी है? हमें भी सुनाओ।” लता ने जिद-भरे स्वर में कहा, बेटे, एक जंगल में अपने चेले के साथ एक महात्मा रहते थे।” दादाजी ने कहानी शुरू करते हुए कहा-“ महात्मा दिन-भर घोर तपस्या करते थे। चेला उनकी सेवा करता और जंगल से लकड़ियाँ, फल, फूल, जड़ी-बूटियाँ आदि लेकर आता। एक दिन उसकी नजर झाड़ियों के पीछे किसी हिलती हुई वस्तु पर पड़ी। उसने ध्यान से देखा, वहाँ हिरण का छोटा-सा बच्चा घायल हालत में पड़ा छटपटा रहा था। उसके शरीर पर घाव थे और उनसे खून बह रहा था।
चेले को यह देखकर दया आ गई। वह हिरण के उस अबोध घायल बच्चे को कुटिया में ले आया। उसे देखकर महात्मा को भी गहरा दुःख हुआ। गुरु-चेले ने मिलकर जड़ी-बूटियों का लेप तैयार किया और हिरण के घावों पर लगा दिया। कुछ ही दिनों में हिरण का घायल बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो गया। अब वह छलाँग मारता, दौड़ता हुआ कुटिया के चारों ओर चक्कर लगाता रहता। उसे देखकर महात्मा ने अपने चेले से कहा-‘देखी बेटा, तुमने एक घायल और मूक प्राणी की सेवा करके उसकी जान बचा दी। बेटा, याद रखो, अच्छे काम का परिणाम हमेशा अच्छा ही होता है। हम जो भी कर्म करते हैं, उसका फल हमें अवश्य मिलता है। अच्छे काम का फल अच्छा ही मिलता है। अंत भला तो सब भला। चेले ने बड़े ध्यान से महात्मा की बातें सुनीं और उनके चरण छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया। | कहानी सुनकर अमर और लता ने दादाजी से कहा-“दादाजी, अब हम भी अच्छे-अच्छे काम किया करेंगे क्योंकि अंत भला तो सब भला ।”
यह सुनकर दादाजी हँस पड़े और बोले-“शाबाश बेटे! याद रखो. जरूरतमंद, लाचार और दीन-दुखियों की मदद करना सबसे बड़ा पुण्य का काम है। जैसे, अंधे को रास्ता बताना, भूखे को रोटी खिलाना, प्यासे को। पानी पिलाना आदि। तुम अपने किसी ऐसे साथी की मदद कर सकते हो जो पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ गया हो। उसकी कठिनाई दूर करने की कोशिश कर सकते हो। असहाय लोगों की मदद करने से ईश्वर प्रसन्न होता है और हमारे मन को बड़ी शांति मिलती है।” दादाजी की बातें सुनकर अमर और लता ने अपने मन में प्रतिज्ञा की कि भविष्य में वे लाचार लोगों की मदद अवश्य करेंगे। अमर ने एक चार्ट पेपर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा-अंत भला तो सब भला-और उसे अपने स्कूल के डिस्पले बोर्ड पर लगा दिया। इस बात में कोई संदेह नहीं। कि इस कहावत को पढ़कर बच्चों के मन में दूसरों की भलाई करने की भावना जागृत हुई।
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