अहंकारी का सिर नीचा
Ahankari ka Sir Nicha
एक आम का पेड़ तथा एक बरगद का पेड़ साथ साथ । उगे हुए थे। आम का पेड़ मीठे-मीठे आमों से लदा हुआ। था। इसी कारण मार्ग से गुजरने वाले सभी व्यक्ति आम के पेड़ को ललचाई नजरों से देखते थे। स्वादिष्ट आमों से लदे होने के कारण आम के पेड़ को अपने ऊपर घमण्ड हो गया। एक दिन वह बरगद के पेड़ को चिढ़ाते हुए बोला, “देखो, लोग मेरी तरफ कैसी ललचाई नजरों से देख रहे हैं। और एक तुम हो, तुम्हें तो कोई पूछता तक नहीं। मानो या न मानों मैं सभी पेड़ों में श्रेष्ठ हूँ। लोग मेरे फल को बड़े चाव से खाते हैं।” आम के पेड़ की घमण्ड भरी बातें सुनकर बरगद का पेड़ बोला, “मित्र, प्रकृति का यही नियम है। तुम्हारे फल लोगों को पसन्द हैं जबकि मेरे फल किसी को भी पसंद नहीं। पर तुम्हें इस बात का अहंकार नहीं करना चाहिए।”
कुछ दिन पश्चात् उस मार्ग से राजा के सैनिक 3 गुजरे। उन्होंने आमों से भरा पेड़ देखा तो राजा के लिए आम तोड़ने लगे। जल्दबाजी में वे आम के साथ-साथ उसकी टहनियाँ भी तोड़ते जा रहे थे। अपने मीठे फलों के कारण ही आम के पेड़ की ऐसी दुर्दशा हो रही थी। जबकि बरगद का पेड़ अपनी जगह पर पहले की तरह हरा-भरा और सुरक्षित खड़ा था। अत: कहा गया है कि घमण्डी का सिर एक न एक दिन जरुर नीचे होता है।