आग लगने पर कुआँ खोदना
Aag Lagne par Kuva Khodna
शाम को दोस्तों के साथ खेलने के बाद अमर वापस अपने घर आया और दादाजी से बोला-“दादाजी, आज भरत हमारे साथ खेलने नहीं आया। सुना है, वह बीमार हो गया है।”
दादाजी ने पूछा-“क्यों बेटा, उसे क्या हुआ है?”
अमर ने उत्तर दिया-“दादाजी, उसे टायफायड हो गया है। उसके घर वाले कुछ दिन से उसे अपने आप ही कुछ-कुछ दवाएँ दे रहे थे, लेकिन उसे कुछ फायदा नहीं हुआ। अचानक उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो उसे अस्पताल ले गए हैं।” दादाजी बोले-“बेटा इसी को कहते हैं, आग लगने पर कुआँ खोदना।”
लता ने पूछा-“दादाजी, इसका क्या मतलब हुआ?” दादाजी ने समझाया-“बेटे, इसका मतलब है कि मुसीबत आने से पहले ही उसका उपाय कर लेना चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमें बहुत नुकसान हो सकता है। जैसे, बीमार पड़ने पर ठीक से इलाज नहीं किया जाए तो मरीज की जान भी जा सकती है। इसी तरह, परीक्षा से पहले पढ़ाई न करने पर बच्चे फेल भी हो सकते हैं।”
“दादाजी, हमें इस कहावत के बारे में कहानी सुनाओ।” अमर ने कहा । दादाजी ने कहानी शुरू करते हुए कहा-“ एक गाँव था रामपुर। उस गाँव में एक पुराना कुआँ था। उसे बंद करके एक मंदिर बना दिया गया। गाँव से एक किलोमीटर की दूरी पर एक कुआँ था। उसका पानी ठंडा और मीठा था। गाँव के लोग उस कुएँ से पानी लाते थे। गाँव से दूर होने के कारण महिलाएँ अँधेरा होने से पहले ही उस कुएँ से पानी ले आती थीं। गाँव की औरतें अपने सिरों पर पानी से भरे हुए घड़े लेकर गीत गाते। हुए चलती थीं। एक बार रामपुर गाँव में रात के समय लोग दीवाली का त्योहार मनाने में लगे हुए थे। चारों तरफ जलते हुए दीये तारों की तरह टिमटिमा । रहे थे। बच्चे और बड़े सब मिल-जुलकर आतिशबाजियाँ जला रहे थे। रंग-बिरंगी फुलझड़ी, अनार, फिरकी, हंटर और पटाखे। तभी अचानक । एक पटाखा उछलकर एक घर की छत पर जा गिरा। छत के ऊपर सूखी। लकड़ियाँ, उपले और फूस रखा था। जलते हुए पटाखे की चिंगारी से फूस धू-धू करके जल उठा। पास ही रखी सूखी लकड़ियों ने भी आग पकड़ ली। देखते-ही-देखते घर की छत पर आग के शोले उठने लगे। कहते-कहते दादाजी रुक गए। दादाजी, फिर क्या हुआ?” लता ने पूछा।
“हाँ, फिर किसी की नजर उस आग पर पड़ गई। वह चिल्लाया-‘आग लग गई, आग लग गई।’ यह सुनकर लोग उस तरफ भागे। काफी भीड जमा हो गई। सब लोग तमाशा देखने में लगे थे। किसी को नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए? थोड़ी देर में ही आग फैल गई और साथ वाले मकान को अपनी चपेट में ले लिया। एक-एक करके कई मकानों में आग लग गई। तब लोग चिल्लाने लगे-“अरे! पानी लाओ! आग बुझाओ!’ लोगों के हाथ-पाँव फूल गए। इतना पानी कहाँ से आए? तभी कोई चिल्लाया-‘अरे, जल्दी से कुआँ खोदो, वरना सारे गाँव में आग लग जाएगी।
बस, फिर क्या था! मूर्ख लोग पानी के लिए कुआँ खोदने में लग गए और आग दूसरे घरों में फैलती चली गई।” दादाजी ने कहानी पूरी की। दादाजी, इसका मतलब है कि समझदार लोग समस्या बढ़ने से पहले ही उसका उपाय कर लेते हैं और मूर्ख लोग इस बात पर ध्यान ही नहीं देते।” अमर ने कहा।