दैनिक समाचारपत्र के सम्पादक को विद्यार्थी अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए अपनाए जाने वाले उपायों के वर्णन पर लगभग 250 शब्दों में एक पत्र लिखिए।
सम्पादक,
‘दि इंडियन एक्सप्रेस’,
नई दिल्ली।
महोदय,
आपके प्रतिष्ठित समाचारपत्र के माध्यम से मैं देश में विद्यार्थी अशांति द्वारा उत्पन्न भयप्रद स्थिति की ओर राष्ट्रीय नेतृत्व का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, जिसे यदि तत्काल रोका नहीं गया तो स्थिति के परिणाम काफी गंभीर और भयावह हो सकते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि विद्यार्थी अशांति वर्तमान समय का ज्वलंत प्रश्न है। हालांकि, इसे देश की सामान्य अशांति एवं असंतोष के संदर्भ में देखना और विश्लेषण करना उचित है। समाज के सभी वर्गों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। मूल्यों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। और कराधान का बोझ बढ़ता जा रहा है। असंतोष की आग में सर्वव्यापी भ्रष्टाचार रूपी ईंधन लगातार डाला जा रहा है। हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार रूपी यह राक्षस शिक्षा का पवित्र मंदिर माने जाने वाले शैक्षिक संस्थानों को निगलता जा रहा है। अब भ्रष्टाचार की जड़ें नर्सरी और के.जी. कक्षाओं तक पहुँच गई हैं। अपनी इच्छा के विद्यालय में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए उनके माता-पिता को विभिन्न स्तर पर शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों और संस्थानों को रिश्वत देनी पड़ती है। भ्रष्टाचार के वातावरण में पले-बढ़े बच्चों के अनियंत्रित होने में कोई आश्चर्य नहीं है। परीक्षाओं में अंक बेचे जाते हैं। पहले विद्यार्थियों को ईश्वर में आस्था रखने और अच्छा काम करने की शिक्षा दी जाती थी। अब प्रायः प्रत्येक विद्यार्थी ईश्वर में आस्था खो चुका है और किसी भी प्रकार का गलत काम करने में नहीं हिचकिचाता है।
विद्यार्थी अशांति का कारण वर्तमान शैक्षिक प्रणाली भी हो सकती है जिसका उद्देश्य ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना के लिए सस्ता क्लर्क उत्पन्न करना था। बदली हुई परिस्थितियों के साथ यह प्रणाली पुरानी, अप्रचलित, खोखली एवं उद्देश्यविहीन हो गई है। किसी व्यक्ति को इतना शिक्षित होना चाहिए कि वह जीवन के व्यावहारिक मूल्यों का वहन कर सके। शैक्षणिक संस्थानों में अनियमित कक्षा अवधि, भीड़-भाड़ वाले विद्यालय एवं महाविद्यालय, पाली व्यवस्था और ऐसे ही अन्य दोष युवाओं को शैक्षिक जीवन के जोश एवं उत्साह से वंचित कर रहे हैं। सच कहा जाए तो सर्वव्यापी बाल अपराध ने हमारी शैक्षणिक प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है। विद्यार्थियों को ऐसे विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में डाल दिया गया है जहाँ न तो ज्ञान प्रदान किया जाता है और न ही कोई दिशा-निर्देश दिया जाता है। वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए हैं और भीड़ जैसा व्यवहार करने लगे हैं। औसत विद्यार्थियों के पास रोजगार एवं भविष्य में निराशा के सिवाय कुछ नहीं है। जब वे अपने शैक्षणिक जीवन के बाद का जीवन देखते हैं तो उनकी आँखों के सामने अँधेरे के सिवाय कुछ नजर नहीं आता है। इसलिए, वे घृणा और निराशा में वर्तमान प्रणाली के प्रति उग्र रूप से पेश आते हैं। इसलिए, शिक्षा की सम्पूर्ण प्रणाली में सुधार लाना और इसे चमकाना समय की मांग है। शिक्षकों को अपनी भूमिका ठीक ढंग से निभानी चाहिए। शिक्षा की पुरानी पद्धति में सुधार लाने और इसकी पूरी तरह से मरम्मत करने की आवश्यकता है। युवाओं के दिमाग से निराशा एवं असंतोष दूर करने के लिए पाठ्यक्रम को रोजगारोन्मुख बनाने की आवश्यकता है। जब वे मन में स्पष्ट रूप से समझने लगेंगे कि शैक्षणिक पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद उनकी उपलब्धियों के अनुरूप उनका भविष्य उज्ज्वल और आशाजनक है तो वे अनुत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करने से पहले सोचेंगे।
भवदीय,
15 सितम्बर,
(क)