एक हिन्दी दैनिक समाचारपत्र के सम्पादक को एक पत्र लिखिए जिसमें न्यायालय द्वारा मुकदमों का फैसला देने में अधिक समय लगने के बारे में शिकायत कीजिए और सुझाव दीजिए कि सरकार और न्यायपालिका को मामले में सुधार लाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।
सम्पादक,
‘हिन्दुस्तान’,
नई दिल्ली।
महोदय,
आपके प्रतिष्ठित समाचारपत्र के माध्यम से मैं मुकदमों का फैसला सुनाने में न्यायालय द्वारा अधिक लम्बा समय लिए जाने के लिए अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। सब जानते हैं कि कुछ ऐसे मुकदमे है जिनकी कानूनी प्रक्रिया में 50 वर्ष या इससे अधिक समय लग जाते हैं तथा जिसमें वादी और प्रतिवादी दोनों मर जाते हैं और कानूनी लड़ाई पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। यह स्पष्ट है कि ऐसे मुकदमों में न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले पक्ष का उद्देश्य समाप्त हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्याय में विलंब करना न्याय से इंकार करना है। किंतु अभी तक यह बात वहीं रुकी हुई है. कि न्यायिक प्रक्रिया कच्छप गति से चलती है और कभी-कभी यह कछुए से भी धीमी हो जाती है। शायद यही समय है जब सरकार और न्यायपालिका दोनों को कानून की प्रक्रिया को तेज करने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
कानून की धीमी प्रक्रिया के कारणों का पता लगाने के लिए अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। मुकदमों और पिछले बकाया मुकदमों के निपटारे में विलंब का मुख्य कारण विधि आयोग और इस उद्देश्य के लिए नियुक्त विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर दिए गए सुझावों का पालन नहीं करना है। स्वयं विधि आयोग ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में माना है कि यद्यपि उसने कई सिफारिशें दी थीं लेकिन कुछ अन्य मामलों में उनकी सिफारिशें पहले ही पूर्ववर्ती समितियों और आयोगों द्वारा दिए गए सिफारिशों के समान रह गईं। इसलिए, आयोग महसूस करता है कि जब तक उन सिफारिशों को मजबूत आकार देने के लिए सकारात्मक इच्छा और दृढ़ इच्छा शक्ति नहीं होगी तब तक मुकदमों में विलंब होता रहेगा। आयोग ने यह भी माना है कि न्यायिक मुकदमों और बकाया मुकदमों के निपटारे में विलंब के प्रश्न पर विचार करने वाली कोई रिपोर्ट केवल तभी फलदायक हो सकती है जब रिपोर्ट पर अविलंब कार्यवाही की जाए। विलंब के विषय पर विचार करने वाली रिपोर्ट का अपना महत्त्व होता है। इसलिए, यह अत्यावश्यक है कि रिपोर्ट पर कार्रवाई करने में अकारण विलंब नहीं किया जाए जो स्वयं विलंब को समाप्त करने के विषय में विलंब करता है।
विलंब के अन्य महत्त्वपूर्ण कारणों में मुकदमे के दोनों में से किसी एक पक्ष या इसके वकीलों द्वारा मुकदमे को लंबा खींचना है। प्रिजाइडिंग अधिकारी द्वारा ऐसे मुकदमों का दृढ़ता से संचालन की आवश्यकता होती है। कभी-कभी न्यायिक अधिकारी न्यायालय के कोप से बचने के लिए न्यूनतम बाधा वाला मार्ग अपनाने के प्रति प्रवृत्त होते हैं। हाल के वर्षों में न्यायालय की शक्ति एवं प्रभाव कई गुणा बढ़ गई है। तालुक या जिला स्तर पर ऐसे उदाहरण हैं जहाँ ऐसी शक्ति एवं प्रभाव का उपयोग ऐसे मुकदमों में दृढ़ता दिखाने के लिए न्यायिक अधिकारी के धमकाने के लिए किया जाता रहा है। ऐसा प्रायः सभी देशों में होता है। इसके अतिरिक्त, अधिकांश कार्यालयों में कार्यप्रणाली में ढीलापन है। प्रायः सभी कार्यालयों में प्रति व्यक्ति काम घट गया है। कार्य दक्षता में सामान्य कमी आ गई है। चूँकि हमारे कुछ न्यायिक अधिकारी उच्च योग्यता वाले व्यक्ति हैं इसलिए आशा की जानी चाहिए कि उन्हें अन्य कार्यालयों में दक्षता के ह्रास से अप्रभावित रहें।
इसलिए, यह अत्यावश्यक है कि सरकार को विधि आयोग और अन्य संस्थाओं द्वारा की गई सिफारिशों की शीघ्रता से जाँच पड़ताल करनी चाहिए और अस्वीकार्य नहीं होने की स्थिति में इन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए तथा बिना विलंब के इन्हें कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
अंतिम एवं सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि हमारी प्रणाली की सफलता इसे संचालित करने वाले मानवीय तत्त्व पर निर्भर करती है। यदि लोग अपने कार्य को ठीक ढंग से नहीं करेंगे तो न्याय प्रणाली ठीक से कार्य करने में असफल हो जाएगी। दूसरी तरफ, यदि लोगों में प्रारंभिक प्रणाली के प्रति अत्यावश्यकता और उत्तरदायित्व की भावना है तो वे अच्छा कार्य कर सकते हैं।
इसलिए, सरकार और न्यायपालिका को लोगों में अत्यावश्यकता की भावना और जानकारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
भवदीय,
5 नवम्बर,
(क)