हाल ही में आपके शहर के समाचारपत्र ‘द सन टाइम्स‘ में अपने देश को विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अधिक धन खर्च करना बुद्धिमानी है या नहीं, पर बहुत से पत्र लिखे गए। अपना विचार रखते हुए सम्पादक को एक पत्र लिखिए।
सम्पादक,
‘द सन टाइम्स’,
नई दिल्ली।
महोदय,
हाल ही में ‘द सन टाइम्स’ के स्तंभ में की जा रही चर्चा, अपने देश को विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अधिक धन खर्च करना चाहिए कि नहीं, के संबंध में मैं कुछ कहना चाहता हूँ। विदेशी पर्यटकों के प्रति खुली नीति के समर्थकों ने विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अधिक से अधिक धन खर्च करने की वकालत की है जिसके बारे में उनका तर्क है कि इस खर्च से एक तरफ स्थायी परिसम्पत्तियों का निर्माण होगा और जिसके फलस्वरूप आने वाले समय में विभिन्न पर्यटक स्थलों और सूचना एवं परिवहन के साधनों में विकास होगा जो पूरी तरह से राष्ट्रीय हित में है। इससे पर्यटन का विकास होगा और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन व्यवसाय में संलग्न लोगों का विकास होगा जिससे राज्य को भी इस विकास का तर्कसंगत लाभ मिलेगा।
इसके विपरीत, विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए भारी खर्च करने वाले विरोधियों का मानना है कि हमने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए इतनी मोहक चीजों का विकास कर लिया है कि अन्य विकास कार्यक्रमों की कीमत पर भी पर्यटकों को आकृष्ट नहीं कर सकते हैं और यह बिना सोचे-समझे वैसे हानिकारक प्रभाव डालते हैं जो कुछ पर्यटक और देश की भलाई वाले सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कल्याण को नुकसान पहुँचाते है। ये वकालत करते हैं कि यदि इस धनराशि को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए खर्च करने के बदले आधारभूत एवं उपभोक्ता वस्तु उद्योगों के तीव्र विकास पर खर्च किया जाता है तो हम बेहतर समग्र विकास कर सकते हैं और पर्यटकों के निर्यात से आय की तुलना में तैयार माल के निर्यातों के जरिए अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकते हैं।
संतुलन की दृष्टि से मैं महसूस करता हूँ कि पर्यटकों के लाभ के लिए पर्यटक स्थलों, संचार, परिवहन, होटल और मोटल सुविधा के विकास के लिए भारी धनराशि का खर्च पूरी तरह न्यायसंगत होते हुए भी अन्य विकास की कीमत पर पर्यटन परियोजनाओं पर अंधाधुंध खर्च करने की भारत एवं विदेश की वर्तमान नीति असंतुलित है। पर्यटकों का स्वागत करते समय हमें अपने देश के सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में पर्यटकों द्वारा लोगों की गरीबी और भोली जनता के साथ दुर्व्यवहार और शोषण जगजाहिर है। सही सोचने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस बात से सहमत होगा कि पर्यटन का विकास करने के उत्साह में हमें सामान और सेवाएँ बेचनी चाहिए न कि इस महान देश की आत्म और सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों को बेचना चाहिए।
इसलिए, इस विषय पर पुनर्विचार करने और उचित सीमा के अंदर विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के उत्साह को रखने की आवश्यकता है।
5 नवम्बर,
भवदीय,
(क)